चाह है मेरी
हाँ, मैं मछली हूँ,
तड़पता हूँ ज्ञान के लिए
उस सत्संग के लिए
जहाँ अविरल झरझर अंतरंग की धार हो
विशाल, अखंड स्वेच्छा सागर में
तैरना चाहता हूँ मैं
जहाँ मनुष्यता की बात हो
मनुष्य का विचार हो
जहाँ उत्कृष्ट शोध हो
अखंड भाव की गरिमा हो
वहीं मैं निवास करना चाहता हूँ
जहाँ झूठ न हो
समानता की बात हो
नियमों के साथ चाल – चलन हो
जहाँ मन – वचन – कर्म में भेद न हो
वहीं जोड़ना चाहता हूँ
मैं भी
अपने विचारों को
समाज के हित में
अपनी शक्ति को
नित्य मैं बटोरना चाहता हूँ।