कुंडलिया
“कुंडलिया”
बचपन में पकड़े बहुत, सबने तोताराम
किये हवाले पिंजरे, बंद किए खग आम
बंद किए खग आम, चपल मन खुशी मिली थी
कैसी थी वह शाम, चाँदनी रात खिली थी
कह गौतम कविराय, न कर नादानी पचपन
हो जा घर में बंद, बहुरि कब आए बचपन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी