गीतिका/ग़ज़ल

गजल : कभी हरियाली होती थी

कभी हरियाली होती थी, चारों तरफ गांव में
जंगलों को कटवा डाला, विकास की चाव में

ईमारतें झुक गई अब, मां-धरती की छाती पर
प्रदूषण  फैलाते जा रहे, हम  थोक के भाव में

लोग ढूंढते रहते पेड़, अक्सर भरी दुपहरी में
गाड़ी खड़ी करने को, उसकी  ठण्डी छांव में

शहरों की हालत तो है, और भी ज्यादा बदतर
श्वास लेना भी है मुश्किल, प्रदूषण के प्रभाव में

संतुलन प्रकृति का काफी, बिगड़ता चला जा रहा
सब-कुछ जल जाएगा, एक-दिन सूरज के ताव में

सिलसिला चलता रहा अगर, यूं ही लापरवाही का
कहां से  ऑक्सीजन लाओगे, जीवन के  बचाव में

विकाश की दौड़ में हम, विनाश की ओर बढ़ चले
आओ  मिलकर प्रयास करें, प्रकृति के  बदलाव में

‘राजस्थानी’ सम्भल जाओ, अब भी वक्त शेष है
कुल्हाड़ी मत ना मारो यूं, खुद अपने ही पांव में.

— तुलसीराम राजस्थानी

तुलसीराम राजस्थानी

शिक्षा- बी.कॉम. 1986 @ पद- ब्रांड एम्बेसडर, स्वच्छ भारत मिशन @ संवाददाता- कुमावत क्षत्रिय मासिक पत्रिका @ कोषाध्यक्ष- श्री कुमावत समाज सामूहिक विवाह सिमिति,नावां @ संयोजक- नावां सोशियल सर्विस सोसाइटी @ लेखक व मंच संचालक- अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित व कवि-सम्मेलनों में भागीदारी @ पता- गणगौर स्टूडियो, नावां सिटी-341509 (जिला नागौर) राजास्थान @ मोबाइल- 9928249021 @ Email- gangorstudio@gmail.com