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यही समय है ‘दलाई लामा’ को ‘भारतरत्न’ से अलंकृत की जाय !

मेरी एक क्षणिका है-

“चीन की चालों का जवाब है
दलाई लामा !
तिब्बत को स्वतंत्र कराया जाय
और दलाई लामा को मिले भारतरत्न !”

सत्यश:, पुरानी नहीं, यह मामला हमेशा नूतन है, सरकार सिर्फ घोषणा भर करेंगे कि हंगामा बरप जाएगा ! अमर उजाला के अनुसार, पूर्वी लद्दाख के गलवन घाटी में हिंसा के बाद से भारत और चीन के बीच भारी तनाव की स्थिति बनी हुई है। दोनो देशों की सेना आमने सामने है। इसी बीच 14 वें तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का 85 वां जन्मदिन 6 जुलाई को मनाई गई और उनके अनुयायियों  में इस दिन को लेकर काफी खुशी है। अपने जन्मदिन के अवसर पर दलाई लामा ने ट्विटर पर अमेरिकन भौतिक विज्ञानी डेविड बोह्म के बारे में स्पेशल ऑनलाइन स्क्रीनिंग की योजना का ऐलान किया है, जिन्हें तिब्बती धर्मगुरु अपने साइंस के गुरुओं में से एक मानते हैं। बता दें कि रविवार को दलाई लामा ने जन्मदिन के एक दिन पहले ताइवान में आयोजित समारोहों के दौरान जनरल टीचिंग ऑन माइंड की ट्रेनिंग भी दी। 14 वें  दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को हुआ था। बचपन से वे तिब्बतियों की परेशानियों को समझने लगे थै औऱ इसके लिए वे चीन के खिलाफ आवाज उठाने लगे। भारत ने दलाई लामा को तब शरण दी थी, जब वह मात्र 23 वर्ष के थे। दलाई लामा को मुख्य रूप से शिक्षक के तौर पर देखा जाता है क्योंकि लामा का मतलब गुरु होता है। दलाई लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं। चीन के अत्याचार से परेशान होकर दलाईलामा पहुंचे भारत दरअसल 13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को चीन से स्वतंत्र घोषित कर दिया था और इस वजह से सन 1950 में चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया था और यह तब हुआ जब वहां 14वें दलाई लामा के चुनने की प्रक्रिया चल रही थी। तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा।

कुछ सालों बाद तिब्बत के लोगों ने चीनी शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अपनी आजादी की मांग करने लगे। हालांकि विद्रोहियों को इसमें सफलता नहीं मिली। दलाई लामा को लगा कि वह चीन के जाल में बुरी तरह से फंस जाएंगे तो सन 1959 में उन्होंने भारत में शरण ली। दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे। भारत में निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की संख्या 80,000 से अधिक है और सभी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के हिमालयी शहर में निर्वासन में रहने लगे। आखिर दलाईलामा के नाम भर से क्यों बढ़ जाती है, चीन की बेचैनी ! चीन को भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देना अच्छा नहीं लगा और उसे डर था कि दलाईलामा उसके तानाशाही और क्रूरता के बारे में दुनिया को न बता दे। दलाईलामा अक्सर तिब्बत की स्वायतता की बात करते हैं जो कि चीन को हमेशा से नागवार गुजरा है।

सत्याग्रह के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू ने हर कदम पर मैकमोहन रेखा की दुहाई देकर अपनी बात रखी। चीन जो एक समय पर इस रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा मानने लग गया था, अब इससे साफ़ इनकार करने लगा। अक्सर जवाहरलाल नेहरू के ख़तों के जवाब में चीनी नेता बस ‘जवाब’ ही देते थे। जवाबदेही नदारद थी। दिनांक 22 मार्च, 1959 को जवाहरलाल नेहरु ने एक और ख़त लिखा कि उन्हें बड़ा आश्चर्य है कि चीन भारत और तिब्बत के बीच सीमा को ही मानने से इंकार कर रहा है. उन्होंने बड़े विस्तार से पुराने हवाले दिए जैसे कि नक़्शे, संधियां और यहां तक कि दोनों मुल्कों के बीच प्राकृतिक सीमा रेखा जो पहाड़ों और नदियों से बनाई गयी थी। इसके पहले कि चाऊ एन लाई कोई जवाब देते दलाई लामा हिंदुस्तान आ चुके थे। ऐसा इसलिए कि ल्हासा में हालात बिगड़ते जा रहे थे. चीनी सेना ने ज्यादतियां शुरू कर दी थीं। विरोध में तिब्बत की खाम्बा जनजाति उठ खडी हुई।

चीनी सरकार ने दलाई लामा से कहा कि वे अपने सैनिकों को खाम्बा विद्रोहियों को कुचलने का हुक्म दें। दलाई लामा ने बुद्ध का हवाला देते हुए विद्रोहियों को हिंसा त्यागने के लिए तो कहा, पर अपने सैनिक उनके सामने नहीं उतारे। चीन मतलब समझ गया था । अब उसने अलग तरकीब सोची। दलाई लामा को चीनी सरकार ने पेकिंग (बीजिंग) में आकर मिलने के लिए कहा । साथ में सलाह दी कि वे सैनिक न लेकर आयें। दलाई लामा के एक ऑस्ट्रेलियाई दोस्त और सलाहकार हेंरिच्क हर्रेर ने चीन की चाल भांप ली और उनसे कहा कि वे अगर बीजिंग गए तो हमेशा के लिए धर लिए जायेंगे। दलाई लामा की मां ल्हासा में भारतीय दूतावास के सामने जाकर रो पड़ीं और बीच-बचाव करने की बात की। भारत अब भी ख़ामोश था। उसकी अपनी दुविधाएं थी, पर लामाओं और खाम्बाओं के सामने अब कोई दुविधा नहीं थी। उन्होंने फ़ैसला कर लिया था- चाहे जो हो जाए, वे जिएं या मरें, उनके भगवान दलाई लामा को चीनी हाथ भी नहीं लगा पाएंगे! हेंरिच्क हर्रेर ने दलाई लामा को सलाह दी कि उन्हें ल्हासा छोड़ देना चाहिए और जहां से बौद्ध धर्म की नाल जुड़ी है, वहां चले जाना चाहिए यानी भारत। बेटे को अपनी मां की तरफ ही देखना चाहिए।

भारत तो आतिथ्यक देश है तथा बौद्ध धर्मगुरु और तिब्बत के सर्वेसर्वा रहे दलाई लामा के भारत में शरण लिए 60 से अधिक वर्ष हो गए । वे भारत के ऋणी हैं । हमारी कूटनीति दलाई लामा के माध्यम से हो और तिब्बत को स्वतंत्र घोषित किया जाने की पहल हो, ताकि चीन भी अपनी औकात को निहारे, ताकि उनकी विस्तारवादी नीति को झटका लगे। तिब्बत को स्वतंत्र कराया जाय और दलाई लामा को मिले भारतरत्न । चूँकि इनसे पहले भी भारत सरकार ने देश में रह रही मदर टेरेसा को इस सम्मान से नवाजे हैं, तो नेल्सन मंडेला और खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे विदेशी भारतचिंतक को भारतरत्न से नवाजे हैं।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.