मुहब्बत में मिलने का दर कहाँ है।
मिले सकून दिल को वो घर कहाँ है।
यादों में तेरी जो मर मिट गए हम,
मेरी चाहत की उसे खबर कहाँ है।
रहती न पल भर आँखों से दूर कहीं,
ढूँढती फिरे मुझे वो नज़र कहाँ है।
लौट आए मेरी हर खुशी के लिए जी,
मेरी सब दुआओं का असर कहाँ है।
सिर कंधे पर रख के फिर मुस्कुराना,
बदनसीब का यह मुकदर कहाँ है।
जब तक नसीबा कदम चल रहा था,
मुफ़लिसी में मेरा हम सफर कहाँ है।
है वायदा किया साथ जिएंगे मरेंगे,
है उन के सिवा मेरा बसर कहाँ है।
— शिव सन्याल