गीत/नवगीत

सावन क्यों होता मनभावन?

सूरज अपनी रश्मिपुंज से, जल का वाष्पन करता है।
धीरे – धीरे नभ में लाकर, हवा संग में धरता है।
अपनेपन की सरस ऊष्म से, ये जल-वाष्प मेघ बनते।
धरा सुंदरी को व्याकुल लख, मिलन हेतु आकुल रहते।।

उमड़ घुमड़कर गरज सहमकर, सूरज के सम्मुख जाते।
कभी नम्र हो कभी उग्र हो, दिल की चाहत बतलाते।।
निश्छल प्रेम देख,सूरज से, उनको आज्ञा मिल जाती।
आँख मूँद लेते रवि – चंदा, धरा विरहिणी इठलाती।।

धरा तप्त-निर्वस्त्र बदन को, झुक बादल ढक लेता है।
भूमि-प्रिया के रिक्त हृदय में, नेह- नीर भर देता है।।
छुपा मेघ,वसुधा सकुचाती, आया मनहर है सावन।
इसीलिए लगता है सबको, सावन अतिशय मनभावन।।

डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन