गीतिका/ग़ज़ल

गजल

कदम नेह के पथ पे रखना संभलकर
नहीं तो किसी पग गिरोगे फिसलकर।

ये तुम्हें रोकना, चाहता जग है सारा,
बढ़ो आगे सबके मनसूबे कुचलकर।

न मिल पाये तो भी कहे जग तुम्हारी,
दिखा दो सभी को किस्मत बदलकर।

लड़ के भला जीत जाना भी क्या है,
ह्रदय जीत के तुम बनो तो सिकंदर।

मोहब्बत की राहें तो जोखिम भरी हैं,
चलो तो ही, रुकना नहीं हो जो थककर।

लगन भागीरथ सी लगाई गर तुमने,
स्वर्ग से आयेगी गंगा उतरकर

लकीरों की परवाह मोहब्बत करे क्या,
ऋषभ प्यार ने कब है देखा सम्भलकर

— ऋषभ तोमर

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना