बाल कविता

बाल कविता – बादल

कभी जो थे मासूम से सूने-सूने बादल |
अब दिखा रहे तरह-तरह के रंग बादल ||

झमा-झम-झम झड़ी लगा रहे |
तड़ा-तड़-तड़ बिजली चमका रहे ||

कभी छोटीं तो कभी बड़ीं-बड़ीं बूंदें |
सुन गड़-गड़ की ध्वनि बच्चे आँखें मूंदें ||

जब जोर-शोर से बरसे पानी |
छतरी खोल बाहर निकले नानी ||

सर-सर-सररर हवा चले पुरवाई |
टीनू-मीनू ने कागज की नाव चलाई ||

बागों में नन्हीं-नन्हीं कलियां मुस्काई |
मेढ़क दादा ने टर्र-टर्र की टेर लगाई ||

कीट-पतंगों के जीवन में बहार आयी |
खेतों में चहुंदिशि हरियाली छायी ||

कीचड़ की लपटा-लपटी से बेहाल |
मामाजी की बदल गई है देखो चाल ||

वर्षा रानी आती हैं, थोड़ी-बहुत समस्या लाती हैं |
पर धरती के जीवन में नव प्राण भर जाती हैं ||

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111