कविता

एक सुबह वो ज़रूर आएगी

एक सुबह वो ज़रूर आएगी
हर एक चिंता से मुक्त होकर
जब चेहरे पे मुस्कान छाएगी
मन में बसे भय से दूर होकर
ज़िन्दगी फिर खिलखिलायेगी
एक सुबह वो ज़रूर आएगी
यारों से गले मिलेंगे, झूमकर
यादें वो पुरानी फिर छाएंगी
बेपरवाह बैठेंगे सब मिलकर
खुशी से आंखें छलक जाएंगी
एक सुबह वो ज़रूर आएगी
अंधी दौड़ भाग रहे मनुष्य पर
कुदरत करिश्मा कर दिखाएगी
इंसानियत बैठे हैं जो भूल कर
नियति उन्हें पाठ सब पढ़ाएगी
— आशीष शर्मा ‘अमृत’

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान