कविता

कलयुग का भारत

कलयुग के भारत की हैं बात निराली
ईमानदारी यहाँ कुछ ने ही जानी।
माँ-बाप की कुछ लोग कद्र नहीं करते
औरतों का भी सम्मान नहीं करते।
काट दिया इंसान ने इंसान को
बेच दिया अपने ही जहान को।
शराब की लत में डुबा यहां का इंसान हैं
बेच रहा अपना ही घर-बार है।
बेटियों को यहाँ जन्म नहीं लेने देते
उनको पैरों की धूल यह समझते।
स्कैम्स तो यहाँ रोज का पंगा
नेता कराते हर बात पर दंगा।
कानून यहां का है अंधा
फिर भी यहाँ सब है चंगा।

– श्रीयांश गुप्ता

श्रीयांश गुप्ता

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