लघुकथा

टका टक

”टिक टॉक नहीं. अब टका टक करिए.” सुबह-सुबह सर्वेश को पहला समाचार देखने को मिला. यह समाचार से ज्यादा एक विज्ञापन अधिक था, पर था टका टक.

”टका टक का विज्ञापन देखा क्या?” दीपक का मैसेज आया. ”क्या धांसू नया शब्द ढूंढा है टका टक!”

”टका टक भले ही टका टक हो, पर टका टक शब्द में नया क्या है?” सर्वेश ने लिखा.

”यार, पहली बार सुना है टका टक!”

”रहेगा तो तू दीपक ही न! जरा अपनी बाती को थोड़ा तेज कर! मैं तो कई सालों से इस शब्द से परिचित हूं.” सर्वेश का ज्ञान मुखर था.

”वो कैसे?”

”तुझे याद है, बचपन में सब चीज चका चक होती थी. रोटी-सब्जी भी चका चक, बात भी चका चक, कपड़े भी चका चक, यहां तक कि दोस्त भी चका चक!”

”हां, पर मैं तो टका टक की बात कर रहा हूं.” मैसेज चल रहे थे.

”अरे भाई, यही चका चक आगे चलकर मेरे लिए टका टक हो गया!”

”वो कैसे?” शायद दीपक की लौ अभी पूरी तेज नहीं हुई थी.

”देख, जब मैं छठी क्लास में था, सर जी ने हमें विरोधाभासी शब्द पढ़ाए थे. दिन-रात, सुख-दुःख, अंधेरा-उजाला आदि शब्दों के जोड़े में दूसरा शब्द पहले शब्द का विलोम शब्द होता है. कुछ रीतिवाचक क्रियाविशेषण शब्द पुनरावर्तक होते हैं. जैसे- साथ-साथ, धीरे-धीरे आदि.”

”हां, यह तो मैंने भी पढ़ा था, पर यहां तो बात टका टक की है न!” दीपक की टका टक की रट जारी थी.

”उसी बात पर आ रहा हूं. मैंने एक चुटकुला पढ़ा था-

”एक पति अपनी पत्नि से- देखो, सारा सामान तुम मत उठाना, सफर में थक जाओगी! क्या-क्या सामान है?”

”ज्यादा कुछ नहीं, बस छतरी-वतरी, संदूक-वंदूक, बिस्तर-विस्तर!” पत्नि ने जवाब दिया.

”ठीक है मिल-जुलकर उठा लेंगे.” पत्नि ने सहमत होते हुए कहा.

”अच्छा ऐसा करते हैं, तुम छतरी उठा लेना, मैं वतरी उठा लूंगा, तुम संदूक उठा लेना, मैं वंदूक उठा लूंगा, तुम बिस्तर उठा लेना, मैं विस्तर उठा लूंगा.”

”अरे यह तो चुटकुला हो गया न! टका टक का क्या हुआ!” दीपक झल्लाने-सा लगा था.

”बस, तब से मैं भी चका चक-टका टक कहने लगा था.”

”लो खोदा पहाड़, निकली चुहिया, वह भी मरी हुई! अबे टका टक ऐप की बात कर.”

”अच्छा वो——-! भारत-चीन सीमा विवाद के बीच पिछले दिनों सरकार ने 59 चाइनीज ऐप्स को बैन कर दिया था. इसके बाद ‘मेड इन इंडिया’ ऐप्स की अचानक से बाढ़ सी आ गई है. इनमें से कई तो शॉर्ट-वीडियो ऐप ‘टिकटॉक’ (Tik Tok) द्वारा पीछे छोड़ दिये गये शून्य को भरने की कोशिश कर रहे हैं.” सर्वेश ने सहज भाव से लिखा.

”यानी, यह देसी ऐप है!” दीपक की लौ तनिक तेज हो गई थी.

” बिलकुल देसी जी, शुद्ध देसी. आगे सुनो, इनमें से कुछ तो लोकप्रियता भी हासिल कर रहे हैं. इसी कड़ी में अब वीडियो प्लेयर और वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ‘एमएक्स प्लेयर’ (MX Player) ने अपना नया शॉर्ट वीडियो ऐप ‘टका टक’ (Taka Tak) लॉन्च कर दिया है, जो चाइनीज शॉर्ट वीडियो ऐप ‘टिकटॉक’ (Tik Tok) का विकल्प माना जा रहा है.”

”सच में तुम्हारे बचपन वाले टका टक का जवाब नहीं, यह ‘टका टक’ भी लाजवाब है.” दीपक बहुत खुश और रोमांचित था.

”यूजर्स Taka Tak के माध्यम से हिंदी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी और इंग्लिश जैसी भाषाओं में मजेदार कंटेंट बना सकते हैं. इसमें यूजर्स अपनी पसंद की भाषा वाली वीडियो शेयर कर सकते हैं. इंटरफेस Taka Tak ऐप का एक हद तक टिकटॉक जैसा ही है, जिसके कारण इसके यूजर्स को टिकटॉक की अनुभूति महसूस होगी.”

”चल फिर मैं भी ट्राइ करता हूं.” दीपक उत्तेजित था.

”कर ले भाई, फिलहाल ‘टकाटक’ (TakaTak) केवल एंड्रॉयड यूजर्स के लिए उपलब्ध है, जो गूगल प्ले-स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. लेकिन उम्मीद की जा रही है कि इस ऐप को जल्द ही ऐपल के ऐप स्टोर पर लॉन्च किया जाएगा.”

”तब तक ‘टका टक’ के लिए टका टक!” दीपक ने लिखा और ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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  • लीला तिवानी

    एक और लोकल को वोकल-
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