संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी। नहीं, चाह थी, रूप रंग की, मन की प्यास, बुझा न सकी।। सीधे-सच्चे पथ पर चलना। नहीं चाहिए, कोई छलना। सब कह ले, सब कुछ सुन ले, बाहों में उसके, चाहूँ मचलना। प्रेम राह, मिल चलना चाहा, कोई भी, राह दिखा न सकी। संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।। कामना रहित, प्रेम हो जिसका। नहीं, किसी से, वैर हो उसका। बुजुर्गो के प्रति, सेवा भाव हो, हित जो चाहे, सदैव ही सबका। अंग-अंग, सौन्दर्य भले ही, कर्मो से, मुझे लुभा न सकी। संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी। नारीत्व दिखा, अन्दर ना पाया। झूठे ही, प्रेम का, गाना गाया। छलना, छल का भेद, खुला जब, पता चला, बस था, भरमाया। कमनीय कामिनी की, झूठी अदायें, पथ से मुझे डिगा न सकीं। संग साथ की, इच्छा थी, पर, कोई भी साथ निभा न सकी।

परिचय - डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
जवाहर नवोदय विद्यालय, महेंद्रगंज, दक्षिण पश्चिम गारो पहाड़ियाँ, मेघालय-794106, ई-मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com, चलवार्ता 09996388169, rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in
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