कविता

शब्द हो गए निशब्द

शब्द निशब्द हो
अक्षर बन गए
जुबां से उतर
उंगलियों पे अा गए
शब्द और जुबां का
साथ छूट गया जबसे
कीबोर्ड जुबां और
उंगलियां शब्द हो गईं
कानों से सुनने वाले शब्द
आंखों से सुने जाने लगे
कानों का काम
अब आंखों ने ले लिए
जब से जुबां ने बोलना बन्द
लिखना शुरू कर दिया
कान तरस गए
सुनने को प्यार के दो शब्द
जो देते थे बधाइयां
जुबां से बोल कर
अब उंगली चला शब्दों को
भेजने लगे है फेसबुक
व्हाट्सऐप पर
और करने लग गए इतिश्री बस
वाचन में जो आत्मीयता
वो पाठन में है कहां
शब्द कानों में घोलते हैं मिश्रिया
उनको पढ़ने में मिसरिया वो कहां
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020