गीत/नवगीत

बदला सावन

बदला बदला सा लगता है
सावन का हर लम्हा मुझको
इस बारी जो घर में कैद हुई
जैसे भूल चुकी हूं जीवन को
ना कोई उमंग ना कोई तरंग
सब बिखरा बिखरा लगता है
बदला सा लगता है सावन
बदला बदला लगता है,

ना पड़ेंगे झूले पेड़ो पर
ना मिलना होगा सखियों से
अब तो आंखे यूं तरस गई
जैसे मिले ना हो हम बरसों से
यादों में दिल ये तड़प रहा
सब उखड़ा उखड़ा लगता है
बदला सा लगता है सावन
बदला बदला लगता है,

इस श्रावण मास में कावरियां
ना जल लेने जा पाएंगे
वो हर हर बम बम के नारे
क्या कहीं भी ना लग पाएंगे
भोले की भक्ति में मन मेरा
डूबा डूबा सा लगता है
बदला सा लगता है सावन
बदला बदला लगता है,

ना भैया आ पाएंगे मेरे घर
लेकर मनभावन सिंदारा
सावन मास में मायके का
साथ लगे मन को प्यारा
शायद बांध ना पाऊंगी राखी
अब की ऐसा लगता है
बदला सा लगता है सावन
बदला बदला लगता है।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com