भजन/भावगीत

वाह रे ठाकुर जी

तुम ने गज़ब रचा संसार,
चहुंओर मचा है हाहाकार,
वाह रे ठाकुर जी………..!
बेबसी का लगा हुआ अंबार,
खोया अपनापन और प्यार,
वाह रे ठाकुर जी…………!
छद्मश्री को पद्मश्री उपहार,
सच्ची कला हो रही भंगार,
वाह रे ठाकुर जी…………!
खूब बढ़ा काला कारोबार,
मौन देख रही है सरकार,
वाह रे ठाकुर जी…………!
नारियों पे जुल्मों,अत्याचार,
दिख रही खाखी भी लाचार,
वाह रे ठाकुर जी…………!
अपराधी घूमें खुले बाजार,
शरीफों के लिए कारागार,
वाह रे ठाकुर जी…………!
मोबाइल की है कृपा अपार,
टूट रहे हैं,रिश्ते,घर,परिवार
वाह रे ठाकुर जी………….!
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616