बाल कविता

बालगीत “साधारण जीवन अपनाना”

जननी-जन्मभूमि को अपनी,
बच्चों कभी नहीं बिसराना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण जीवन अपनाना।।

रोज नियम से आप सींचना,
अपनी बगिया की फुलवारी।
मत-मजहब के गुलदस्ते सी,
वसुन्धरा है प्यारी-प्यारी।
अपनी इस पावन धरती पर,
वैमनस्य को मत उपजाना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण जीवन अपनाना।।

सुख-दुख का सबके जीवन में,
चक्र सदा है चलता रहता।
वो महान जो दोनों को,
सहजभाव से है हँसकर सहता।
विपदाओं के कठिन काल में,
कभी न तुम है घबराना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण जीवन अपनाना।।

पथ में कंकड़-पत्थर बिखरे,
काँटे उगे हुए गुलशन में।
पथ पर आगे बढ़ते जाना,
आशाओं रखकर मन में।
सत्य-अहिंसा हर हालत में,
हमको है हथियार बनाना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण जीवन अपनाना।।

भारत के हैं भाग्य विधाता,
होनहार सब होते बच्चे।
छल-फरेब को नहीं जानते,
बालक होते मन के सच्चे।
प्यार बाँटना सारे जग में,
सबको अपने गले लगाना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण जीवन अपनाना।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है