लघुकथा

घर का स्तंभ

दहलीज पर पैर रखते ही चाचाजी  ऊँची आवाज़ में माँ पर बरस पड़े ।
भाभी….. …आप नहीं जानती मौहल्ले वाले रजनी को लेकर ‌क्या क्या बातें बना  रहे हैं ? सीढ़ियों से नीचे उतर कर  रजनी को मास्क पहनकर जाते हुए  देख‌कर  उबल पड़े । 
रजनी ठहरो ! कहाँ जा रही हो  ?..सुना है …….चार घंटे बाद लौटकर आती हो आज इस बात का जवाब देना ही होगा । 
तुम्हारे पिता मरे अभी कुछ ही महीने  हुए हैं ।…….और तुम हो कि ये सब । 
“चाचाजी मुझे कमाने के लिए घर से निकलना ही होगा ….वर्ना घर कैसे चलेगा  ।” 
आप तो जानते ही हैं ……पिता जी के मरते ही भाई की नीयत भी बदल गई माँ के भोलेपन का फायदा उठाकर सारा पैसा निकाल लिया और अपने बच्चों को लेकर चला गया पलटकर हम मां बेटी की तरफ देखा भी नहीं ।
चाचाजी मैं रेडीमेड गारमेंट्स की फेक्टरी में कपड़े सिलने जाती हूँ । 
” देवर जी बेटी पर गर्व है इसने ने मेरे घर के स्तंभ को ढहने से बचाया है ….. मैं तो पुत्र मोह में सब गवाँ बैठी थी । 
— अर्विना

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु