धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

दुन्यावी गतिविधियों को महसूस करो

रेत के चमकीले एक कण में पूरी दुनिया का प्रतिबिम्ब देखने के लिए और एक जंगली फूल में इत्र की खुशबू से लिपटे पहाड़ देखने के लिए अवसाद की मुट्ठी को खोलकर आज़ाद हथेलियों पर अनंत के कणों को पकडना होगा।
अगोचर विश्व की गतिविधियों को सुनने के लिए सीने में छुपे मशीन के कान खोलकर फ़लक की हर शै से बजता संगीत सुनना होगा।
रूह नाचने लगेगी जब आसमान में खिलखिलाते तारों की बादलों संग अठखेलियां देखते आपके लब मुस्कान से बातें कर रहे होंगे। महसूस होगी एक महक बूँद गिरेगी जब शीत पहली बारिश की सूखे तप्त जंगल के बूढ़े पेड़ की व्याकुल पीठ पर।
ओस की बूँदों में झिलमिलाता जहाँ देखा है कभी ? दिल के चेहरे पर आँखें उगा लो, इन्द्रधनुषी रंग की टशर उभर आती है जब सूरज की रश्मियाँ ओस की बूँद पर पड़ जाती है। पलकों की कोर पर हंसते-हंसते जो बूँद ख़्वाबगाह से छलक कर ठहर जाती है उसका अद्दल प्रतिबिम्ब पाओ ओस की बूँदों में तब महसूस करना हरसू शबनम सी नमी।
या रोम-रोम झँकृत होते जब बाँसुरी की तान छेड़े तब समझ लेना आख़री साँसें लेती धरा पर जामुनी शाम के ढलते ही कहीं किसी सरहद की क्षितिज पर अमन के फूल खिले होंगे।
तब एक अनुगूँज उठेगी दुन्यावी गतिविधियों में। सबकुछ मुमकिन है बशर्ते गर हर सीने में धड़कता मशीन समझदार होगा, तब कायनात की हर चीज़ महसूस करने के काबिल हर इंसान होगा।।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर