कविता

“आम” जी आप जरा हट जाइए

माननीयों की निकली सवारी।
“आम” जी आप जरा हट जाइए
छोड़े बॉस का डर, करें न फिकर।
एंबुलेंस में भी है आप अगर ।
जल्दी है तो वहीं निपट जाइए।
“आम” जी आप हट जाइए ।
इनकी गाड़ी चलेगी अगाड़ी ।
तोड़ेगी सिग्नल और देगी गाली ‌।
आंख मूंदिए या पिट जाइए।
“आम” जी आप हट जाइए।

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश