ब्लॉग/परिचर्चा

एक और सालगिरह की बधाई: ज्ञान बांटने वाले सुदर्शन भाई

सबसे पहले सुदर्शन भाई को सालगिरह की बधाई. आपको बता दें, कि आज सुदर्शन भाई के जन्मदिन की सालगिरह नहीं है और न ही उनके विवाह की सालगिरह है! आज सुदर्शन भाई के अपना ब्लॉग पर पदार्पण की सालगिरह है. आज के ही दिन दो साल पहले सुदर्शन भाई ने अपना ब्लॉग पर दस्तक दी थी. उनकी पहली रचना आई ‘दरख्त’. दरख्त पेड़ों के प्रति संवेदनाओं से सराबोर एक कविता है, जिससे बाद में हमारे फिर सदाबहार काव्यालय- 2 का आग़ाज़ हुआ था. सुदर्शन भाई, आपको इस सालगिरह की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं.

सुदर्शन भाई के अपना ब्लॉग पर पदार्पण करते ही एक उम्मीद बंधी थी, कि हिंदी के उच्चकोटि के जाने-माने एक मूर्धन्य साहित्यकार का पदार्पण हुआ है. सचमुच सुदर्शन भाई हम सबकी इस उम्मीद की कसौटी पर खरे उतरे हैं. अब तो अपना ब्लॉग पर यह बात सर्वविदित है. इसलिए इस बात को यहीं छोड़कर हम सीधे इस ब्लॉग के मुख्य मुद्दे ”ज्ञान बांटने वाले सुदर्शन भाई” पर चलते हैं.

ज्ञान यानी सरस्वती के भंडार की बात-
”सरस्वति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढ़ै, बिन खरचै घट जात।।”
अपना ब्लॉग पर हम सब ज्ञान अर्जित करने और ज्ञान बांटने ही आते हैं. सुदर्शन भाई के ज्ञान अर्जित करने और ज्ञान बांटने का तरीका कुछ अलग-सा है.

सुदर्शन भाई का ज्ञान गहराई लिए हुए है और वे उसे उन्मुक्त रूप से बांट भी रहे हैं. वे ब्लॉग लिखें या प्रतिक्रिया, खुले दिल से अर्जित ज्ञान को बांटने का उनका उत्सव चलता ही रहता है. सुदर्शन भाई का एक-एक ब्लॉग साहित्य का अनमोल नगीना तो है ही, उनकी हर प्रतिक्रिया भी एक जश्न होती है.

प्रतिक्रिया क्या है?
प्रतिक्रिया के बारे में रविंदर सूदन का कहना है- ”प्रतिक्रिया हमारे मन को संतुष्टि देती है.”

हमारा कहना है- ”प्रतिक्रिया मन का दर्पण होती है.”

सुदर्शन भाई का कहना है- ”प्रतिक्रिया से लेखन का परिवर्धन और परिमार्जन होता है. प्रतिक्रिया लेखन को सुधारने-संवारने का काम करती है.”

सुदर्शन भाई ने यह करके भी दिखाया है. हमारे ब्लॉग्स पर सुदर्शन भाई की कुछ प्रतिक्रियाओं से हम इसे देखने और समझने की कोशिश करेंगे.

अभी कुछ दिन पहले हमने एक ब्लॉग लिखा था- ”राहत (लघुकथा)”. छोटे-से, सरल-से, सहज-से इस ब्लॉग पर सुदर्शन भाई ने जो प्रतिक्रिया लिखी, वह किसी उत्सव से कम नहीं थी. यही उत्सव ”उलझन” जैसी शानदार-जानदार कविता के रूप में परिवर्तित-परिमार्जित होकर एक शानदार-जानदार ब्लॉग बन गया. सुदर्शन भाई ने खुद लिखा है-

”मैं एक बार फिर कहना चाहता हूँ कि ‘उलझन’ की रचना की प्रेरणा ‘राहत’ से मिली. ‘राहत’ ने मेरे दिलो-दिमाग पर काफी प्रभाव डाला. आपकी सभी रचनाएं व्यावहारिक होती हैं और चुनिंदा होती हैं. आपके एक महान शिक्षिका होने का प्रमाण देती हैं. आपके अनवरत प्रयासों से अनेक प्रबुद्ध साहित्यकारों, लेखकों, ब्लॉगर्स, कॉमेंटटर्स से स्नेह मिला. आज की मेरी रचना ‘उलझन’ पर आपकी ख़ास अंदाज़ में मिली प्रतिक्रिया बेहतरीन हैं और हौसला अफ़ज़ाई कर रही है.”

इसी तरह हमारा एक ब्लॉग आया- ”यादों के झरोखे से- 23”. अब यह यादों का झरोखा तो खुलता ही रहता है. लेकिन इस बार तो यह झरोखा ऐसा खुला, कि सुदर्शन भाई की एक कविता बन गई- ”यादों के झरोखे से” यह भी सुदर्शन भाई की प्रतिक्रिया का कमाल था. इस कविता को उन्होंने अपनी दादी मां की याद को समर्पित किया, जिसे आप उनके ब्लॉग ”यादों के झरोखे से” में देख सकते हैं. सुदर्शन भाई ने इसके बारे में लिखा है-
”यह पुनः एक अद्भुत संयोग और आश्चर्य है कि ‘यादों के झरोखे से’ का सृजन आप ही की रचना ‘यादों के झरोखे से-23’ से हुआ.”

इसके बाद तो ब्लॉग ”संकल्पना (लघुकथा)” पर ”संकल्पना: कवि की कल्पना”, ब्लॉग ”बरसों लंबी दूरी (लघुकथा)” पर ”शब्द तुम संभल चलो”, ब्लॉग ”जाग रे ओ इंसान तू” और इंद्रेश भाई की कविता ”मैं तुम्हें कैद करना चाहता हूँ !” पर ”पंछी का पैगाम: इन्द्रेश भाई के नाम” और ”तोहफा (लघुकथा)” पर ”आज हुआ था बड़ा कमाल” कविताएं प्रतिक्रिया-स्वरूप सृजित होती चली गईं. इसे ज्ञान बांटने वाले सुदर्शन भाई की जन्मजात प्रतिभा, पारिवारिक परिवेश के सुंसंस्कारों का प्रतिफल और ज्ञान बांटने की लगन का त्रिवेणी संगम कहा जा सकता है.

बाकी सब कविताएं सदाबहार और कालजयी थीं, ”आज हुआ था बड़ा कमाल” कविता में एक सत्य प्रसंग का पुट भी सम्मिलित था, इसलिए सुदर्शन भाई ने इस पर नोट दिया-
”(लीला दीदी की तोहफा (लघुकथा) पर आधारित)”, ताकि इंसानियत पर लिखी इस कविता के प्रसंग को पाठक समझ सकें.

”यादों के झरोखे से- 23” में उनकी यादों का झरोखा इतिहास में जाकर खुला. इतिहास का पन्ना खोलते हुए सुदर्शन भाई ने लिखा-
”वीर भारतवंशियों का इतिहास वीरतापूर्ण युद्धों की अमरगाथाओं से भरा हुआ है. इन युद्धों में हिन्दू सेनाओं की विजय का प्रमुख कारण एक बेहद विशिष्ट जाति थी जो “चारण” कहलाती थी। राजपूत और क्षत्रिय उसे अपने हरावल (.) में रखते थे। हरावल सेना की वो टुकड़ी होती है जो शत्रु से सबसे पहले भिड़ती है। अग्रिम पंक्ति में चारण योद्धाओं को रखा जाता था। इन्हीं के साथ राज चिन्ह, नक्कारे और पताकाएं चलती थी। ये आत्मघाती हमलावर होते थे और जरूरत होने पर खुद को समाप्त करने में जरा भी नहीं हिचकते थे। ये योद्धा और कवि दोनों भूमिकाओं का निर्वाह करते थे। युद्ध के समय में हरावल के योद्धा और शांतिकाल में डिंगल भाषा के कवि और इतिहासकार | चारण शब्द चाह + रण से बना है अर्थात वह जो रण या युद्ध की चाह रखता है। शांति काल में चारण वीरगति को प्राप्त योद्धाओं पर एक भाषा विशेष में वीर रस की कविताएं लिखती थी। इस भाषा को “डिंगल” कहते थे। इसका अर्थ होता है भारी-भरकम क्योंकि यह कविता अत्यंत भारी, जोशीली और डरावनी-सी आवाज़ में बोली जाती थी और इसकी एक बेहद विशिष्ट शैली होती थी जो अब लुप्त हो चुकी है और अब केवल विरूपण देखने को मिलता है। 1000 ईस्वी के आसपास में डिंगल भाषा में लिखे हुए इस छंद को पढ़ें-
”तीखा तुरी न मोणंया, गौरी गले न लग्ग।
जन्म अकारथ ही गयो, भड़ सिर खग्ग न भग्ग।।” अर्थात यदि आपने अपने जीवन में तेज घोड़े नहीं दौड़ाये, सुंदर स्त्रियों से प्रेम नहीं किया और रण में शत्रुओं के सर नहीं काटे तो फिर आपका यह जीवन व्यर्थ ही गया। एक और उदाहरण देखिए- ”लख अरियाँ एकल लड़े, समर सो गुणे ओज,
बाघ न राखे बेलियां, सूर न राखे फौज।” अर्थात चाहे लाखों शत्रु ही क्यों न हो एक योद्धा उसी तेज़ के साथ युद्ध करता है। जिस प्रकार बाघ को शिकार के लिए साथियों की जरूरत नहीं होती, उसी प्रकार एक योद्धा भी युद्व के लिए फौज का मोहताज नहीं होता।”

हमारा एक ब्लॉग आया ”टमाटर की मुस्कान (लघुकथा)”. इस ब्लॉग में सुदर्शन भाई ने टमाटर को संबोधित करते हुए जो गुफ़्तगू की. उस ज्ञान के भंडार से न केवल टमाटर, बल्कि हम भी विस्मित हो गए. सुदर्शन भाई ने लिखा-
“कहो भई solanum lycopersicum क्या हाल चाल है?” — “अरे इधर उधर क्या देख रहे हो, तुमसे पूछ रहा हूँ” —“मुझसे?” — “हाँ भई तुमसे” “पर मैं तो टमाटर हूँ” — “वोही तो मैं भी कह रहा हूँ” —— “पर अब तो बताओ मुझे सोले……. लाइ … परसी …. यह किस नाम से बुला रहे हो?” — “अरे टमाटर मियाँ, यह तुम्हारा इंटरनेशनल नाम है” — “और मुझे ही नहीं पता!” — “हाँ तुम आदरणीय दीदी से कुछ पढ़ लो, तब मालूम हो जाएगा” — “क्या मालूम हो जाएगा?” — “यही कि solanum lycopersicum तुम्हारा बोटैनिकल नाम है” — “मतलब?” — “मतलब यह कि यह तुम्हारा वनस्पितिक नाम है जिससे हर देश में तुम पहचाने जाओगे, वरना हर देश में तुम्हारा अलग अलग नाम हो जाता है” — “वो कैसे” — “तो सुनो” — british english: tomato /təˈmɑːtəʊ/ nouna tomato is a small, soft, red fruit that is used in cooking as a vegetable or eaten raw in salads.american english: tomato arabic: طَمَاطِم brazilian portuguese: tomate chinese: 番茄 croatian: rajčica czech: rajče danish: tomat dutch: tomaat european spanish: tomate finnish: tomaatti french: tomate german: tomate greek: ντομάτα italian: pomodoro japanese: トマト korean: 토마토 norwegian: tomat polish: pomidor european portuguese: tomate romanian: roșie russian: помидор latin american spanish: tomate swedish: tomat thai: มะเขือเทศ turkish: domates ukrainian: томат vietnamese: cà chua ….. “बस, बस, बस” — “क्यों क्या हुआ” — “बाप रे बाप” — “अब समझ आया?” — “हाँ सर” — “तो रोना धोना बंद करो और आदरणीय दीदी से शिक्षा लो” — “यस सर” कहता हुआ टमाटर खिलखिला पड़ा और सुर्ख लाल हो गया. आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम, टमाटर की गाथा बनी महान.”

ब्लॉग ”खुशियों की बेला आई: जन्मदिन की बधाई” में बच्चों पर एक कविता लिखते हुए सुदर्शन भाई ने लिखा-
”आधी आधी रात को ये
मुर्ग़ा क्यूँ देता है अज़ान
काली-कलूटी कोयल की
क्यूँ मीठी लगती है तान
आसमान में दिन भर ये
क्यूँ भरती है चील उड़ान
बिल्ली रात के वक़्त ही क्यूँ
लेती है चूहों की जान
दिन भर ये सोते रहना
क्यूँ है उल्लू की पहचान
नदी किनारे बगुला क्यूँ
रोज़ लगाता है ये ध्यान
गिरगिट चढ़ती धूप में क्यूँ
रंग बदलता है हर आन
इतने लम्बे लम्बे क्यूँ
होते हैं ख़रगोश के कान
तुम को हो मा’लूम तो कुछ
बतलाओ ना दादी-जान.”
इसे पढ़कर भले ही दादी के पोते आरोह को जिज्ञासा हो-न-हो, हमें जरूर हुई और हमने सर्च किया और जाना कि-
गिरगिट चढ़ती धूप में क्यों रंग बदले?
और आधी आधी रात को ये मुर्ग़ा क्यूँ देता है अज़ान.”
सुदर्शन भाई ने भी कामेंट्स में इसके बारे में विस्तार से बताया. आप भी पढ़ सकते हैं.

एक साल पहले हमारा एक ब्लॉग आया था- ”कम्प्यूटर के कीबोर्ड में F1-F12”. उसमें सुदर्शन भाई ने लिखा-
”आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. महत्वपूर्ण शार्ट कट्स बताने के लिए धन्यवाद. अब जब बात कंप्यूटर और कीबोर्ड की चल ही पड़ी है तो यह जानना ज़रूरी है कि कीबोर्ड को चलते समय हाथों की ग़लत स्थिति से कॉर्पोरल टनल सिंड्रोम जैसी भयंकर समस्या का सामना करना पड़ सकता है विशेषकर लैपटॉप का प्रयोग करते समय. डेस्कटॉप पर काम करते समय आपके डेस्क की ऊंचाई ३० इंच और स्टूल या कुर्सी की ऊंचाई १८ इंच होनी चाहिए। कीबोर्ड के नीचे ऐसी व्यवस्था होती है जिससे कीबोर्ड को आगे से ऊपर उठाया जा सकता है इसका प्रयोग करें, कीबोर्ड एकदम समानांतर नहीं होना चाहिए। अगर आप टंकण यानी टाइपिंग में बिना कीबोर्ड पर देखे सभी उँगलियों का प्रयोग करते हैं तो बहुत बेहतर, अगर नहीं तो धीरे-धीरे यह सीख लें, एक दो उँगलियों से टाइप करने से मानसिक तनाव बढ़ता है और हमेशा आपको कीबोर्ड पर देखते रहना पड़ता है, फिर रुक कर आप स्क्रीन पर चेक करते हैं, इसमें समय बर्बाद होता है. जब भी उँगलियों का इस्तेमाल करें तो आपकी हथेलियां कीबोर्ड से लगभग २ इंच ऊपर होनी चाहियें और जब एक उंगली टाइप कर रही हो तो बाकी उँगलियाँ हवा में रहनी चाहियें. स्पेस बार सिर्फ दाहिने हाथ के अंगूठे से इस्तेमाल करना चाहिए. लैपटॉप पर काम करते समय लैपटॉप को स्क्रीन की तरफ से थोड़ा ऊपर उठा देना चाहिए यानि कीबोर्ड कोणीय स्थिति में आ जाए. इसमें भी टाइपिंग करते समय उपरोक्त नियमों का पालन करना चाहिए. बेड पर बैठ कर लैपटॉप को इस्तेमाल करते समय उसे बेड पर न रखें बल्कि छोटी सी टेबल लेकर ऊँचा करके रखें. गोदी में या बेड पर रख कर इस्तेमाल करने से रीढ़ की हड्डी और गर्दन के जोड़ पर बुरा प्रभाव पड़ता है और स्पोंडिलिटिस जैसे तकलीफ हो जाती है. आँखों पर भी तनाव पड़ता है. लैपटॉप प्रयोग करते समय अक्सर हम हथेलियां कीबोर्ड पर टिका कर उँगलियों को प्रयोग करते हैं जो बहुत ही खतरनाक है. यह बिलकुल नहीं होना चाहिए. कंप्यूटर या लैपटॉप या मोबाइल पर काम करते समय पलकें झपकते रहना चाहिए नहीं तो आँखों में ड्राईनेस आ जाती है. आशा है यह जानकारी महत्वपूर्ण सिद्ध होगी. कीबोर्ड के इस्तेमाल सम्बन्धी यदि कोई जानकारी चाहिए तो संपर्क कर सकते हैं. मेरा ईमेल आईडी – mudrakala@gmail.com”

है न यह ज्ञान की संपूर्णता! साथियो, ज्ञान एक चीज होती है, ज्ञान का भंडार दूसरी चीज होती है, लेकिन ज्ञान बांटना और वह भी सहज और निःस्वार्थ भाव से एक कला होती है. सुदर्शन भाई इस कला के माहिर प्रोफेसर हैं. कहते हैं-

” बड़ों का आशीर्वाद अनमोल होता है.”

सुदर्शन भाई को बड़ों का आशीर्वाद तो मिला ही है, वे जन्मजात प्रतिभाशाली भी हैं, साथ ही उन्हें जिस स्नेहमय और कड़े अनुशासन में पाला-पोसा गया है, शायद उसका ही यह प्रभाव है, कि वे ज्ञान की संपूर्णता तक पहुंच सके हैं और ज्ञान बांटने की कला के माहिर प्रोफेसर बन सके हैं. पूरे दो साल से हम उनकी लगन और मेहनत से परिचित और लाभान्वित हो रहे हैं.

ज्ञातव्य है कि सुदर्शन भाई जाने माने समाज-सेवी हैं. रक्तदान कैंप, नेत्रदान कैंप, जरूरतमंदों तक हर सहायता पहुंचाना, उच्चकोटि के धार्मिक आयोजनों का सफल संयोजन करना और इंसानियत का झंडा गाढ़ना उन्हें विरासत में मिला है. ज्ञान बांटना उसी का प्रतिफल है-

”सेवा का सबसे उत्तम तरीका है,
किसी के मस्तिष्क का ज्ञानवर्द्धन करना.”

सुदर्शन भाई का ज्ञान बांटना सिर्फ अपना ब्लॉग तक ही सीमिल नहीं है.
”जहां भी जाएगा, रोशनी लुटाएगा,
किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता.”

अभी हाल ही में सुदर्शन भाई को ”जेमिनी अकादमी- पानीपत हरियाणा” द्वारा
दो सम्मान पत्र ”अटल रत्न सम्मान- 2020” और ”गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर सम्मान- 2020” से सम्मानित किया गया है. जिनके बारे में आप विस्तार से पढ़ चुके हैं. हम कहते हैं, कि इन सम्मानों से सुदर्शन भाई को समानित किया गया है. असल में सुदर्शन भाई की विद्वता को सम्मनित करके ये सम्मान खुद सम्मानित हुए हैं.

आप लोग जानते ही हैं, कि सुदर्शन भाई के ज्ञान का कैनवास बहुत बड़ा है. एक ब्लॉग में उसका समाना बहुत मुश्किल है. यह तो ट्रैलर है, पिक्चर अभी बाकी है. सुदर्शन भाई का सुदर्शन चक्र ऐसे ही अनवरत चलता रहे, यही हमारी शुभकामना है.

सुदर्शन भाई पर लीला तिवानी के कुछ ब्लॉग्स-
विशेषज्ञ सुदर्शन भाई: जन्मदिन की बधाई
विस्तृत ज्ञान के भंडार सुदर्शन भाई: जन्मदिन की बधाई
300 उत्कृष्ट रचनाओं की बधाई: सुदर्शन भाई
333वें ब्लॉग की बधाई: अंकों के जादूगर सुदर्शन भाई
मनोविज्ञान के चतुर चितेरे: सुदर्शन खन्ना
संयोग पर संयोग-5
चमकता सितारा (लघुकथा)
उत्साह के फूल
निराले विषयों के निराले युवा लेखक
दिलखुश जुगलबंदी के अनेक एपीसोड
फिर सदाबहार काव्यालय के अनेक एपीसोड

अपना ब्लॉग पर शान से दो साल पूरे करने की बधाई: ज्ञान बांटने वाले सुदर्शन भाई.

चलते-चलते
”अभी-अभी सुदर्शन भाई की मेल देखी-
”आपके आशीर्वाद से “इन्वेस्टमेंट प्लान” रचना के साथ ही 350 ब्लॉग्स का लक्ष्य पूर्ण हुआ.”
सुदर्शन भाई, आपके 2 साल में आपका 350 ब्लॉग्स का लक्ष्य पूर्ण हो गया है. हमारी तरफ से 350 ब्लॉग्स का लक्ष्य पूर्ण होने के लिए कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. सबसे बड़ा कमाल तो यह है. कि ये ब्लॉग्स न केवल संख्या की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं, बल्कि गुणवत्ता की दृष्टि से अविस्मरणीय एवं संग्रहणीय भी हैं. आपके उच्चकोटि के इस इस स्तर में निरंतर वृद्धि होती रहे, यही हमारी शुभकामना है.

आज बस इतना ही, शेष बातें कामेंट्स में हमारे पाठक और कामेंटेटर्स की जुबानी.

सुदर्शन भाई का ब्लॉग-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/sudershan-navyug/

जय विजय में सुदर्शन भाई का ब्लॉग-
https://jayvijay.co/author/sudarshankhanna/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “एक और सालगिरह की बधाई: ज्ञान बांटने वाले सुदर्शन भाई

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, आपको अपना ब्लॉग पर पदार्पण के दो वर्ष पूरे होने और इन दो वर्शों में 350 ब्लॉग्स का लक्ष्य पूर्ण करने पर. हमारी तरफ से कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. ये ब्लॉग्स न केवल संख्या की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं, बल्कि गुणवत्ता की दृष्टि से अविस्मरणीय एवं संग्रहणीय भी हैं. आपके उच्चकोटि के इस इस स्तर में निरंतर वृद्धि होती रहे, यही हमारी शुभकामना है.

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