गीतिका/ग़ज़ल

तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या

2122 2122 2122
अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या ।
बेवफ़ाई के लिए मज़बूर है क्या ।।

कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।
तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।

दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।
वो ज़रा सी उम्र में मशहूर है क्या ।।

तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।
शह्र का तेरे नया दस्तूर है क्या ।।

ज़ुल्मते शब हो गयी रोशन यहां भी ।
चाँद का उतरा जमीं पर नूर है क्या ।।

हो रहा है हर तरफ हंगामा यारो ।
आ गई महफ़िल में कोई हूर है क्या ।।

जख़्म जो उनसे मिला था चंद दिन में ।
बन गया वह घाव भी नासूर है क्या ।।

आपके लब पर तबस्सुम हिज़्र में क्यों ।
दर्द साहब आपका काफ़ूर है क्या ।

वह छुपा लेता है चेहरा बारहा क्यों ।
उसकी सूरत चश्म ए बद्दूर है क्या ।।

मेरा ख़त पढ़के बहुत ख़ामोश है वो ।
फैसला मेरा उसे मंजूर है क्या ।।

— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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