गीत/नवगीत

मन वृंदावन हो आता है

वर्ष के बारह मासों में सावन का मास जो आता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,

वो वृंदावन जिसमें मेरे गिरधर ने रास रचाया था
जिसे देख देख डाली डाली पत्ता पत्ता हरसाया था
चाहे गैया हो या ग्वाल सब का ही गिरधर से नाता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,

सारी गैया और ग्वाल सभी कान्हा के प्रेम दीवाने थे
सुध बुध खोते मुरली की धुन में जग से हुए बेगाने थे
गोपी और राधा संग कान्हा यौवन यहीं गुजारा है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,

जब जाऊं मैं वृंदावन तो कुंज गली हो आती हूं
धूल के हर एक कण में भी कान्हा की खुशबू पाती हूं
वो मुरली का राग मधुर मेरे कानों में घुल जाता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com