गीतिका/ग़ज़ल

कितने वक़्त से जुबां से कोई बात निकाली ही नहीं

कितने वक़्त से जुबां से कोई बात निकाली ही नहीं
और निकाले भी तो कैसे, कोई शख़्स खाली ही नहीं

अब अफ़सोस होता है अपनी तमाम दुनियादारी पर
खुद से ही बातें कर सकें, ऐसी कला पाली ही नहीं

हर लम्हा, हर अहसास तक खर्च कर दिया दूजों पर
अपनी जरूरत की चीज़ें तक मैंने सम्भाली ही नहीं

आसमान तक उठ गया होता मैं भी औरों की तरह
पर भरे बाज़ार में भी अपनी कीमत उछाली ही नहीं

बहुत आसान हो सकता था अपनी ज़िंदगी का सफर
लेकिन रकीब की दी हिदायत भी मैंने टाली ही नहीं

अकेलापन भी इतना ज़रूरी होगा, क्या पता था हमें
अकेला होके भी अकेले रहने की आदत डाली ही नहीं

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com