हास्य व्यंग्य

चाय पर धमाल 

कल एक मित्र से मिलनें जानां हुआ खुशी की बात ये थी कि वे कवि नहीँ थे लेकिन ज़्यादा खुशी की बात इसलिए नहीँ थी कि वे पत्रकार थे वैसे क़द मेंं बेशक छोटे हैँ लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र मेंं उनका क़द बहुत बड़ा है वे वरिष्ठ पत्रकार की श्रेणी मेंं आते हैँ मेरे आत्मीय और किशोरावस्था के मित्र हैँ सो उनसे काफ़ी देर तक साहित्य राजनीति और अन्य कई विषयों पर बातचीत हुईं
इतनें मेंंबिस्कुट और नमकीन के साथ  चाय भी आगई
मैंने उनसे कहा मैं चाय नहीँ पीता हूँ
तो वे एकदम से नाराज़ हो गये बोले चाय क्यूँ नहीँ पीते हो
मैंने कहा चाय नुकसान करती है
यह सुनते ही वह तपाक से बोले क्या नुकसान करती है चाय पीने से ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा मर जाओगे तो क्या हुआ अभी भी जी कर कौनसा तीर मार रहे हो अभी भी आपकी उम्र कोई कम नहीँ है सिक्स्टि प्लस तो हो ही अभी तुम्हे देश भर मेंं साहित्य के क्षेत्र मेंं बहुत से लोग जानते और पहचानते हैँ तुम्हारे मरने पर शहर भर मेंं और अन्य शहरों मेंं भी शोक की लहर छा जायेगी जगह जगह शोक सभाएँ होंगी तुम्हारे निधन को साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति बताया जायेगा दो मिनट का मौन रखा जायेगा तुम्हारी कविताओं ग़ज़लों को गोष्ठियों मेंं कोट किया जायेगा कुछ अख़बार तुम्हारे व्यक्तित्व और क्रतित्व पर विशेषांक प्रकाशित करेंगे हो सकता है किसी चौराहे या रोड का नाम भी तुम्हारे नाम पर रख दें और तुम्हारे बच्चे या कोई सहित्यिक संस्था  तुम्हारे नाम पर कोई पुरुस्कार भी घोषित कर दें
अभी मारोगे तो सोचो कितने फ़ायदे मेंं रहोगे दस बीस वर्ष बाद मरने पर ये पीढ़ी बदल चुकी होगी नई पीढ़ी तुम्हे पहचानती भी नहीँ होगी जो थोड़े बहुत जानते होंगे वे तुम्हारे मरने पर कहेंगे अरे ये अभी तक जिन्दा थे बरसों से देखा नहीँ था तो हम तो समझ रहे थे निकल लिऐ होंगे
और रहा सवाल ज़्यादा जिन्दा रहनें का तो अब तुम्हे ज्ञानपीठ या पदमश्री तो मिलनें से रही क्योंकि वहां बहुत लम्बी लाईन लगी है और वह कैसे मिलती है ये तुम भी जानते हो और मैं भी हाँ मरणोपरान्त सम्भव है ज्ञानपीठ या पदमश्री मिल जाये क्योंकि अभी तक देखा गया है कि कई साहित्यकारोँ को मरने के तुरन्त बाद ये उपाधियां प्रदान की गईं हैँ कई साहित्यकार तो इसी पद्मश्री और ज्ञानपीठ के चक्कर मेंं अस्सी नब्बे और पिन्चान्वे साल तक इन्तजार करते रहते हैँ लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात
मैं इतनी देर से उनका धाराप्रवाह उद्बोधन सुनने के बाद मुझे लगने लगा कि मैंने अभी तक बिना चाय पिए अपना जीवन निरर्थक ही गँवा दिया है और ऐसा जीवन  जीने से वो भी साहित्य के क्षेत्र मेंं
जी कर बहुत बड़ी ग़लती कर दी है वैसे चाय पीने के इतनें फाएदे के साथ साथ चाय बेचने का भी फायदा है आदमीं चाय बेचकर प्रधान मंत्री भी बन सकता है
मैंने मित्र द्वारा बुलवाई गईं चाय फटाफट पी गया और उनसे कहा एक कप चाय और मँगवा दो
— डॉ रमेश कटारिया पारस

डॉ. रमेश कटारिया पारस

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