बाल कहानी

नीलमणि

एक दिन मम्मी रुही को घर के बाहर गार्डन में बैठा, अंदर चली गई। पौधे के पास बैठी रुही को देखकर पेड़ से उतर कर चिड़िया और गिलहरी भी रुही के पास इधर उधर घूमने लगी रुही ने अपने पास रखी कटोरी से दाना डाल दिया गिलहरी खुशी से झूमकर दाना खाने लगी चिड़िया भी फुदक फुदक कर दाना खा रही थी रुही इन को देखकर ताली बजाकर अपने पास बुलाया गिलहरी उसके पास आकर बैठ गई। गिलहरी पेड़ पर चढ़ती कभी उतरती उसकी उछल कूद का दृश्य देखकर रुही खुश हो रही थी। रुही के निकट ही पौधे पर सुन्दर लाल रंग फूल खिला देखा तो वह ध्यान से उसे निहार ने लगी उसने देखा पत्ते के ऊपर चमकती ओस की बूंद के पास ही एक सफेद पंखों वाली एक छोटी सी लड़की जिसकी आँखें गोल चमकीली सुनहरे रंग की ड्रेस में पैरों में गोल्डन जूते पहने पत्ते पर बैठी थी। उसने रुही को देखकर हाथ हिलाया बदले में रुही ने भी हाथ हिलाया लड़की रुही को देखकर बोली क्या तुम भी मेरी तरह अकेली हो तुम्हारे कोई भाई बहन नहीं है क्या ? लेकिन तुमने ये सब कैसे जाना ? तुम हर दिन अकेली इस बगीचे में आती हो और पेड़ पौधों को निहारती हो चिड़िया गिलहरी को दाना खिलाती हो और फिर मां आकर तुम्हें ले जाती है। तुम्हें कभी किसी बच्चे के साथ खेलते नहीं देखा । हाँ ! में अकेली हूँ मेरा कोई भाई बहन नहीं है। अड़ोस पड़ोस के बच्चें मुझे अपने साथ नहीं खिलाते क्यों कि मेरा एक पैर कमजोर है मैं भाग दौड़ नहीं सकती वे सब मेरा मजाक उड़ाते हैं। मैं घर में ही रहना पसंद करती हूँ। घर में रहकर चित्रकारी करती हूँ। अच्छा ! ये तो बहुत बढ़िया।
तुम्हारा नाम क्या है
मेरा नाम नीलमणि है। मैं नीलम परी की बेटी नीलमणि हूँ।
नीलमणि क्या सचमुच तुम परी की बेटी हो।
हाँ! में नीलम परी की बेटी हूँ।
नीलमणि तुम मुझसे दोस्ती करोगी? नीलमणि मुस्कुराई और रुही को हथेली आगे करने के लिए कहा रुही ने अपनी हथेली आगे बढ़ाकर पत्ते के नीचे लगादी अब नीलमणि ने धीरे से पैर लटकाए और रुही की हथेल पर उतरकर बैठ गई अब रुही की खुशी का ठिकाना नहीं रहा आज उसे एक प्यारी सी दोस्त मिल गई थी। दौनों ने खुब बातें की रुही की मम्मी को आता देख नीलमणि पत्ते पर चढ़ कर रुही को कल मिलने के लिए कह कर गायब हो गई। रुही को मम्मी गोद में उठाकर अंदर ले आई और एक आराम कुर्सी पर बैठा दिया रुही पापा से चहक चहक कर बातें करने लगी रोज तो वह बगीचे से अंदर आकर उदास हो जाती थी लेकिन आज रुही कुछ बदली-बदली सी लगी चेहरे से खुशी छलक रही थी। यह देखकर रुही की मम्मी को बहुत ही अच्छा लगा।
रुही की मम्मी ने रुही मन पसंद खीर बनाई खाना टेबल पर लगाकर परले रुही को खिलाया फिर खुद खाया। रुही को मम्मी ने ब्रश करा कर पापा की बगल में कर बिस्तर पर लिटा दिया।
रुही ने पापा से कहा पापा .. पापा कल वाली कहानी सुनाईये जो अधूरी रह गई थी राजकुमारी का क्या हुआ ? अच्छा सुनो! राजकुमार ने राजकुमारी को घने जंगल में शेर से बचा लिया और खुशी खुशी अपने राज्य वापस‌ आ गए। पापा राजकुमार ‌कितना बहादुर था अकेला ही शेर से भिड़ गया। और राजकुमारी की जान बच गई।
पापा मुझे नींद आ रही है आप चंदा वाला गाना सुनाओ
सुनो !
चंदा प्यारे गोल मटोल
बादल में छुप जाते
रुही की आंँखों में
निंदिया दे जाते …..
चंदा प्यारे गोल मटोल
गाना खत्म होते होते रुही सो गई।
अगले दिन रुही खुशी खुशी उठी अपना सभी काम मम्मी की सहायता से निपटा कर तैयार हो गई आज दोस्त से जो मिलना था।
मम्मी ! मुझे बगीचे में ले चलो।
रुही तुम आज बहुत उतावली हो रही हो क्या बात है ? रुही ने नई दोस्त से मिलने की बात माँ से छुपा ली …प्यारी मम्मी चिड़िया और गिलहरी मेरा इंतजार कर रही होंगी उनसे मिलना है।
मम्मी ने रुही को गोद में उठाया और बगीचे में कुर्सी के ऊपर बैठा दिया और अंदर चली गई। नीलमणि ने पत्ते पर खड़े होकर हाथ हिलाया रुही ने भी खुशी-खुशी हाथ हिलाकर अपना हाथ पत्ते की तरफ बढ़ा दिया नीलमणि धीरे से उतरकर हाथ पर बैठ गई। नीलमणि तुम्हारा घर कहां है। मैं परी लोक में रहती हूँ। साल में एक बार अपनी पढ़ाई का इम्तहान पूरा करने के लिए पृथ्वी लोक पर आती हूँ। मेरी गुरु मेरी मां है उन्होंने जो शिक्षा दी है उसकी यह परिक्षा है। अगर मैं पास हो गई तो परीलोक लोट जाऊंगी। नीलमणि मेरे तो स्कूल की अभी छुट्टी चल रही है। होमवर्क मिला है जिसे में मां के साथ ‌बैठकर करती हूँ।
रुही चलो मेरे साथ अपना घर दिखलाकर लाती हूँ नीलमणि ने एक छड़ी निकाली और रुही को छोटा सा बनाकर अपनी हथेली पर रखकर उड़ चली पत्तों पत्तों के बीच बीच से एक बड़े से पेड़ की खुलाड़ के अंदर घुस गई उसमें एक सुंदर सा महल था जहां सभी नीलमणि की तरह पंखों वाले बच्चे और परियां घूम रही थी। नीलमणि ने अपना महल घुमाया और फिर अपने कक्ष में आकर रुही को पलंग पर बैठा दिया उसके लिए फल ले आई। दौनों ने मिलकर फल खाने के बाद नीलमणि ने रुही को अपनी मां से मिलवाया। नीलम परी को देखकर रुही ही खुशी का ठिकाना नहीं रहा। नीलम परी ने एक फल भेंट किया, रुही ने सहर्ष स्वीकार किया। नीलमणी अब बहुत समय हो गया घर चले। नीलमणि ने रुही को हाथ पर बैठाकर उड़कर बगीचे में पहुंच गई रुही को बैठा कर विदा ली।
नीलमणि आज का दिन तो बहुत ही मजेदार बीता।
आहा ! कितना मजा आया तुम्हारे साथ सैर करते हुए। नीलमणि हाथ हिलाती हुई चली गई रुही ने भी हाथ हिलाकर विदा कर ही रही थी कि मम्मी आकर के रुही को अंदर ले आई। आज तो रुही बेहद खुश थी। मम्मी उसके अंदर आई तब्दीली अच्छी लग रही थी। धीरे-धीरे रुही की सेहत में भी सुधार आरहा था। रुही और नीलमणि पक्की सहेलियां बन गई थी रोज ढेर सारी बातें करना रुही को तो मानो सहेली के रुप में बहन मिल गई थी। बातें करते करते नीलमणि ने रुही से कहा आज तुम खुद चलकर मेरे पास आओ।
नीलमणि तुम जानती हो।
हाँ! जानती हूँ फिर भी रुही एक बार कोशिश एक करने में क्या‌ हर्ज है, मेरे कहने से करके देखो तो सही।
रुही ने बहुत ही हिम्मत करके अपने पैर को कुर्सी से नीचे जमीन पर रखने की कोशिश की पैर बुरी तरह से कांप रहा था ।
रुही शाब्बास बहुत अच्छी कोशिश की है।मेरा मां नीलम परी ने जो तुम्हें फल दिया था उसे हथेली पर रखकर प्रार्थना करो ” हे आत्मविश्वास के फल मेरे अंदर आत्मविश्वास को जगा दो, मैं चलकर अपनी सहेली के साथ खेलना चाहती हूँ।”

रुही ने जेब से फल निकाला और नीलमणि ने जैसा कहा उसने दोहराया।
रुही ! फिर से एक बार चलने की कोशिश करो।
रुही ने इस बार अपने शरीर की ताकत को समेट कर कुर्सी से नीचे उतरने की कोशिश की इस बार वह उतरकर डगमग करती हुई सहेली के पास पहुंच गई।
नीलमणि ने उसे संभाल लिया और रुही का हाथ पकड़कर उसे चलाते हुए कुर्सी पर बैठा दिया।

दूर खड़ी रुही मम्मी रुही को डगमगाने हुए चलते देख रुही की तरफ दौड़ पड़ी।
रुही तुम ठीक हो।
हाँ ! मां मैं ठीक हूँ।
दूर खड़ी नीलमणि ने रुही से कहा – “वाह ! रुही शाब्बास इसी तरह रोज कोशिश करोगी, “सचमुच में तुम एक दिन दौड़ने लगोगी। ”
“आज मैं तुम्हारे अंदर का आत्मविश्वास जगाने की परिक्षा में ‌सफल हो गई। अब मैं माँ के साथ परीलोक लौट जाऊँगी, रुही तुम मुझे बहुत याद आओगी। रुही तुम उदास मत होना मुस्कुराते रहना।” हाथ हिलाकर नीलमणि ने रुही से विदा ली। रुही ने भारी मन से नीलमणि से कहा कुछ दिन और रुक जाती पृथ्वी पर।
रुही हम समय पूरा होने पर पृथ्वी पर नहीं रह सकते हमें परिस्तान जाना ही होगा।
नीलमणि आकाश में नीलम परी के साथ रुही को जाती हुई दिखाई दी।रुही हाथ हिलाती रही जब तक नीलमणि आँखों से ओझल नहीं हो गई।
नीलमणि की बातों ने रुही के अंदर सोया हुआ आत्म विश्वास जगा दिया था। रुही माँ की उंगली पकड़कर डगमगाते कदमों से घर के अंदर चली गई।

— अर्विना

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु

One thought on “नीलमणि

  • चंचल जैन

    लाजवाब। सादर 

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