कविता

प्रेम

आसमान में झिलमिल-झिलमिल, करते रहते हैं तारे,
कभी न लड़ते वे आपस में, रहते प्रेम से सारे.

पर्वत के उर से निःसृत हो, नदियां कलकल बहतीं,
बड़े प्रेम से से फिर सागर में, एकमेक हो रहतीं.

वृक्ष कभी न झगड़ते-लड़ते, निज सम्पदा लुटाते हैं,
फूलों से महकाते जग को, फल से भूख मिटाते हैं.

चींटी को चीनी का दाना, एक कहीं मिल जाता है,
उसको बिल तक पहुंचाने को, झुंड पूरा आ जाता है.

पक्षी भी मिल-जुलकर रहते, प्रेमभाव अपनाते हैं,
एक वृक्ष पर रहें सैकड़ों, स्नेह-दया दर्शाते हैं.

हाथी का झुंड हिलमिल रहता, मिल जाता उसको मेवा,
पड़े अगर बीमार एक तो, करते सब उसकी सेवा.

इन सबसे हीशिक्षा लेकर, मानव प्रेम से क्यों न रहे?
क्यों भूमि के अंश की खातिर, लाखों का वह जीवन ले?

भाई पर भाई वार करे, थोड़ी-सी भूमि पाने को,
कहला मीत गला वह काटे, थोड़ी माया हथियाने को.

तिनके से तिनका मिलने से, बन जाता विहग-बसेरा है,
एक-एक कर ईंट मिले, बनता इक भवन सुनहरा है.

एक-एक मानव से मिलकर, एक राष्ट्र का हो निर्माण,
सब मिलकर डट जाएंगे तो, दुश्मन से मिल जाए त्राण.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244