गीतिका/ग़ज़ल

तुम्हीं बताओ

उसकी बंदिश में कब तक रहता तुम्हीं बताओ,
मैं उसके जुल्म कब तक सहता तुम्हीं बताओ!

जहर पीता रहा मैं अब तक खामोशी से यारों,
आखिर कब तक कुछ ना कहता तुम्हीं बताओ!

जो छलती रही सदा अपना कह-कह के मुझको,
मैं एक बार उसको क्यों ना छलता तुम्हीं बताओ!

मेरी उन्नति से भी वो जलती रही अंदर ही अंदर,
फिर मैं ही उससे क्यों ना जलता तुम्हीं बताओ!

सफर में साथ छोड़ के वो बदल दी हमसफ़र,
अपने वादों से मैं क्यों ना बदलता तुम्हींं बताओ!

गुजर गया अनमोल समय बेमतलब के रिश्ते में,
बर्बाद हुआ समय क्यों ना खलता तुम्हीं बताओ!

— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616