कविता

खुली आंखों का  सपना 

सुबह वाली लोकल पकड़ी
पहुंच गया कलकता
डेकर्स लेन में  दोसा खाया
धर्मतल्ला में खरीदा कपड़ा – लत्ता
सियालदह – पार्क स्ट्रीट में  निपटाया काम
दोस्तों संग मिला – मिलाया
जमकर छलकाया  कुल्हड़ों वाला जाम
मिनी बस से हावड़ा पहुंचा
भीड़ इतनी कि बाप रे बाप
लोकल ट्रेन में  जगह मिली तो
खाई मूढ़ी और चॉप
चलती ट्रेन में  चिंता लगी झकझोरने
इस महीने एक बारात
और तीन शादी है निपटाने
नींद खुली तो होश उड़ गया अपना
मैं तो खुली आंखों से देख रहा था सपना
— तारकेश कुमार ओझा 

*तारकेश कुमार ओझा

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) पिन : 721301 जिला पश्चिम मेदिनीपुर संपर्क : 09434453934 , 9635221463