कविता

/ छोड़ो यह भेद व्यवधान /

जी नहीं सकता मैं
अकेला
जी नहीं सकते तुम
अकेले
जी नहीं सकता कोई
अकेला
इस मानव जग में
चलना है .. चलना है…
मिलजुलते – प्यार करते
एक दूसरे से और
मानते एक दूसरे को
सहयोग अदा करते परस्पर
जिंदगी को बनाना है
सुखमय – आनंदमय
शील बनो.. सच बनो..
मन, वचन, कर्म से एक रहो
शोधक बनो, अपने आप में
अंतर्यात्री बनो, दिव्य बनो
समता, ममता, भाईचारे की
भव्यधारा में तरते जाओ
लोक कल्याण की ओर
अंतिम साँस तक
अपना कुछ बनते जाओ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।