कविता

चिड़िया के आंसू

मत काटो इन टहनियों को
मत उजाड़ो कई घरौंदे
घरौंदा अपना बनाने को
इन टहनियों में
जीवन के साक्ष्य देखे हैं मैंने
प्रेम और त्याग के
कई निशान देखे हैं मैंने
कण-कण कर, तिनका तिनका जुटाना
चोंच में भर कर लाना
फिर एक नन्हा सा नीड़ बनाना
नन्हें प्राणियों का ये चमत्कार देखा है मैंने……….
घोसले में सजाकर अपने प्रेम की निशानी
गई थी वो दूर कहीं तिनके की तलाश में
आने पर सब तहस-नहस मिला
उजड़ गया था उसके सपनों का घर
अभी कुछ ही दिन तो हुए थे
उन नन्हे परिंदों को घोंसले में आए
कवच तोड़ कर………….
जरूरी था मां का जाना
उन्हें छोड़कर लाने दाना
बहुत रोई थी वह मन ही मन लौटकर
पा रही थी खुद को बहुत मज़बूर
उसी पल उड़ गई थी वहां से कहीं दूर
शायद इस संकल्प के साथ
कि लौट कर नहीं आएगी यहां दोबारा
इंसा की ये नादानी एक दिन
भर देगी उसे ही आत्मग्लानि से….
यह कह रही थी वो शायद
चिड़िया के आंसू क्या देखे है किसी ने………..?

 

— अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।