कविता

राखी का त्यौहार

राखी का त्यौहार आया ,
संग में खुशियां हजार लाया ।
भाई-बहन का सच्चा प्यार ,
प्रेम के धागे में पूरा समाया ।।
बहन अपने पीहर आयी ,
घर में फिर से रौनक छायी ।
बाबुल के बगिया की चिड़िया ,
फिर से घर में बहार लायी ।।
सबके चेहरे खिले-खिले ,
हंस-हंस कर सब बात़े करते ।
सब बचपन को याद करके ,
फिर से जीने की आस करते ।।
माथे पर तिलक लगा कर ,
कलाई पर राखी बांधती है ।
जीवन भर प्यार के संग-संग ,
बहन रक्षा का वचन मांगती है ।।
कहती है मेरे प्यारे भैया ,
तुम राखी की लाज रख देना ।
मां- बाप की सेवा करना ,
और उनको दुःख तुम मत देना ।।
शराब का सेवन मत करना ,
गाड़ी हेलमेट पहन चलाना ।
घर पर राह तकते बीवी-बच्चे ,
उन पर खूब प्यार लुटाना ।।
बहन तो इतना ही चाहती  ,
अपने घर का मान बढाती ।
बहन बड़े प्यार से भाई की ,
कलाई पर राखी सजाती ।।
बहन बेटी जिस घर में होती ,
उस घर में सदा खुशियां आती ।
भ्रूण हत्या क्यों करतें हो ,
बेटी ही सब रिश्ते निभाती  ।।
बेटियां नहीं होगी घर में तो  ,
तुम्हें राखी फिर बाँधेगी कौन ।
ये त्यौहार भी मिट जाएगा  ,
सिर्फ यादें ही रहेगी मौन ।।
जिस बहन के भाई नहीं  है ,
ये भाई “जसवंत” है तैयार ।
बांधकर रक्षा का बन्धन ,
मनाओ सब राखी का त्यौहार ।।
मनाओ सब राखी का त्यौहार ।।
— कवि जसवंत लाल खटीक

जसवंत लाल खटीक

रतना का गुड़ा ,देवगढ़ काव्य गोष्ठी मंच, राजसमन्द