हास्य व्यंग्य

बेसन

कोई तीर से घायल होता है कोई तलवार से,
हम तो मारे गए चिकने-मुलायम बेसन की मार से.
”वो कैसे?”
”मत पूछिए जनाब!”
”फिर भी बात निकली है तो दूर तलक जाने ही दो!”
”तो सुनो. बेसन की धार को हमने ही आमंत्रित किया था. हुआ यह कि हमेशा की तरह हमने-
”बड़े चाव से पाव भाजी बनाई,
रंग-बिरंगी सब्जियों से उसकी रंगत बढ़ाई,
उसमें आंवले के खट्टे-चरपरे स्वाद से,
स्वादिष्टता की सरगम सजाई.
खाने बैठे तो साहब ने सब्जी की स्वादिष्टता के कसीदे पढ़े,
हम खुश हो गए बड़े,
हमने सब्जियों की गिनती गिनाई,
नरम-मुलायम लौकी की तारीफ से,
उनके कान हो गए खड़े.
बोले- ”नरम-मुलायम लौकी के बनाओ कोफ्ते,
खाए हुए दिन हो गए बड़े.”
अब कोफ्तों के लिए चुटकी भर बेसन तो लगना ही था!
सो हम सौदा-सुल्फ लेने गए तो बेसन भी ले आए.
बड़े चाव से हमने स्वादिष्ट कोफ्ते बनाए,
रूखे भी खाए, सब्जी में भी खाए,
खूब मजे उड़ाए.”
अब जनाब जब से लॉकडाउन हुआ है, हमने घर में ब्रेड का चलन कम कर दिया है, कम क्या ना के बराबर कर दिया है,
ब्रेड का स्थान पोहे-उपमा-उत्तपम ने लिया है,
घर का शुद्ध-स्वादिष्ट नाश्ता भी मिल जाता है,
अब तो इसी स्वादिष्ट नाश्ते ने मन को जकड़ लिया है.

यहां हम बात कर रहे थे पाव भाजी की. तो साहब हम बताते चलें, कि हमने तथाकथित पाव भाजी में अपने नवाचार का तड़का लगाकर इसे सदाबहार सब्जी का नाम दे दिया है. सदाबहार सब्जी का नाम सुनते ही सब समझ जाते हैं, कि रंग-बिरंगी सब्जियों से सुसज्जित इस सदाबहार सब्जी में लौकी-टिंडे-मूली आदि भी सम्मिलित हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से घर का कोई-न-कोई सदस्य मुंह बिचकाकर खाता है, भले ही वह सब्जी 78 रुपये किलो ही क्यों न हो. सदाबहार सब्जी के सदाबहार स्वाद के कारण सभी सदस्य हाथ जोड़कर इसे खाते हैं. हम भी इसमें अलग-अलग किस्म की थोड़ी-सी दाल डालकर इसके जायके को नया और सदाबहार बनाए रखते हैं.

बहरहाल बात हो रही थी बेसन की मार की. हमने सूजी निकालने के लिए अलमारी खोली तो बेसन का पैकेट तनिक सूजा हुआ लगा. अजी तनिक सूजा हुआ क्या ऐसा लगा मानो उसे फीलपांव हो गया हो. फीलपांव समझते हैं न, वही हाथीपांव, जिसमें रोगी के पैर हाथी जैसे मोटे हो जाते हैं? अब बेसन का पैकेट था, सो हमने फीलपांव की चिंता ही नहीं की.

अगले दिन उत्तपम बनाने के लिए बेसन का पैकेट निकाला तो और सूज गया था. हमने डॉक्टर की तरह उसका मुआइना किया, तो देखा उसे कोई फीलपांव वगैरह नहीं हुआ था, बस आधा किलो की जगह एक किलो का पैकेट आ गया था. मारा गया ब्रह्मचारी! क्या करेंगे एक किलो बेसन के पैकेट का! अब तो उसे खत्म करने के लिए जुगाड़ लगाना था!

अगले दिन हमने बेसन के गट्टे की सब्जी बना ली. बच्चों के साथ तो बेसन के गट्टे की सब्जी बनाने में बात कुछ और होती है, पर दो जन के लिए बेसन के गट्टे की सब्जी बनाने-खाने का क्या मजा! पर साहब सब्जी मजेदार बनी.

बेसन के गट्टे बनाए तो बाकी सब्जियां नाराज न हो जाएं, सो हमने एक तरकीब निकाली.
”बहुत बढ़िया कमलककड़ी मिली है, टिंडे भी हैं और भिंडी भी. कल के लिए सिंधी कढ़ी का प्रोग्राम रखा जाए!” लंच खाते-खाते हमने प्रस्ताव पेश किया.

कढ़ी का प्रस्ताव तो पास होना ही था, सो अगले दिन कढ़ी बनी. अब दो जन कितनी कढ़ी खा लेंगे, सो कढ़ी तो बनी लेकिन बेसन का पैकेट वैसे ही फूला-का-फूला रहा.
”बेसन की बर्फी बनाए-खाए बहुत दिन हो गए, एक दिन नाश्ते में बेसन की बर्फी बना लेते हैं.” हमने सोचा.

फिर हमने युक्ति निकाली. रक्षा बंधन का त्योहार आने वाला था. लॉकडाउन के कारण भाई के पास राजस्थान जाना तो संभव नहीं होगा, चलो घर में बेसन की बर्फी बनाकर ही वर्चुअल राखी मना लेंगे. मन को खुश किया. वह भी हो गया, पर बेसन के पैकेट की फूलन खत्म होने में ही नहीं आ रही.

छोटे-से रैक में अधिक पैकेट रख पाने के लिए दुकानदार ने न जाने कैसे बेसन के पैकेट को पीट-पीटकर इतना पतला कर दिया था, कि हम उसे आधा किलो का समझकर ले आए थे. अब हालत यह है कि बेसन की मार से हम दुबले हुए जा रहे हैं.

जिस दिन जमकर झमाझम बारिश होगी, हम बारिश के बहाने गर्म-गर्म पकौड़े तो बना-खा ही लेंगे, बाकी आप भी 2-4 रेसिपीज लिख भेजिए, ताकि हम बेसन के पैकेट की फूलन से निजात पा लें.

बेसन की बर्फी की रेसिपी लेनी हो, तो हमसे कहिएगा. गुरमैल भाई ने तो बेसन की बर्फी की रेसिपी से बहुत फायदा उठाया है. अहा, मीठी-मीठी और नरम-नरम! खाने में स्वादिष्ट भी, मजेदार भी और आसान भी.

मजेदार से याद आया, आपके साथ भी कभी-न-कभी ऐसे मजेदार हादसे हुए होंगे, तनिक हमारे साथ शेयर कीजिए न!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “बेसन

  • लीला तिवानी

    आज अयोध्या इतिहास रच रहा है। आज पूरा भारत राममय है। पूरा देश रोमांचित है। हर मन दीपमय है। आज पूरा भारत भावुक है। सदियों का इंतजार आज समाप्त हो रहा है। करोड़ों लोगों को आज ये विश्वास ही नहीं हो रहा होगा कि वो अपने जीते जी इस पावन दिन को देख रहा है।

  • लीला तिवानी

    वर्तमान पीढ़ी जिसमें हम-आप सभी शामिल हैं राम मंदिर की नींव रख ने के ऐतिहासिक अवसर की साक्षी बनेगी और अगले सैंकड़ो बरसों तक हमारी आगामी पीढ़ियां एक-दूसरे को यह बताती जायेंगी

  • लीला तिवानी

    बेसन की बूंदी और लड्डू भी स्वादिष्ट होते हैं और ये मंदिरों में प्रसाद का मुख्य उपादान होते हैं. सिंधी कढ़ी में उबले हुए पकौड़े तो स्वादिष्ट लगते ही हैं, सिंधी कढ़ी -चावल के साथ मीठी बूंदी भी स्वादिष्ट लगती है, जो हम अक्सर घर पर ही बना लेते हैं.

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