लघुकथा

महिमा के मन की घुटन (लघुकथा)

पुराने समय से ही हम सभी अपने से बड़े लोगों से अक्सर एक बात सुनते आए हैं कि सहनशील बनो और कभी-कभी कुछ चीज़ों से समझौता करना भी सीखो, क्योंकि एक सुखी जीवनयापन के लिए यह दोनों ही बातें बेहद जरूरी हैं। खासकर लड़कियों के लिए, क्योंकि उन्हें पराये घर जाना है और अपने परिवार ,माता-पिता का नाम रोशन करना है। शादी के बाद दोनों परिवारों की मान -प्रतिष्ठा को बनाये रखने की जिम्मेदारी लड़की की ही होती है। उसे दो परिवारों को जोड़कर रखना होता है। इसी सोच के साथ महिमा भी अपनी ससुराल विदा हुई। ससुराल के तौर-तरीके और पसन्द-नापसंद को जानने में उसे थोड़ा वक्त जरूर लगा जो कि हर लड़की को लगता है। शुरुआत के कुछ महीने महिमा को एक बहु होने का मान-सम्मान और एक बेटी जितना भरपूर प्यार मिला लेकिन कुछ ही समय में ससुराल वालों का बर्ताव उसके लिए बिगड़ने लगा, साथ ही साथ उसकेे पति विशाल का भी। क्योंकि महिमा एक आत्मनिर्भर लड़की बनना चाहती थी। अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी इसलिए उसने अपनी आगे की पढ़ाई को पूरी करने की सोची। लेकिन महिमा की यह सोच उसके ससुराल वालों को पसंद नहीं आयी। शिक्षित परिवार होनें के बाद भी उनकी सोच पुराने समय की ही थी कि घर की बहु को सिर्फ चूल्हा-चौका ही शोभा देता है ,उसे नौकरी नहीं करनी चाहिए।इससे समाज में ससुराल की मान-प्रतिष्ठा भंग होती है और लोग क्या कहेंगे कि इतने बड़े घराने की बहू नोकरी करती है ।लेकिन शायद वह इन सब बातों से अंजान थे कि आज जमाना बदल गया है। साथ-साथ समाज की सोच भी। आज का युग इक्कीसवीं सदी का युग है जिसमें बेटी-बहु को लोग बराबर का सम्मान देते हैं। जिस तरह से एक बेटी के सपने पूरे किए जाते है ठीक उसी प्रकार लोग अपनी बहु का भी साथ देते है । लेकिन अफसोस आज के समय में भी समाज में ऐसे बहुत से परिवार है जो इन रूढ़िवादी परम्पराओं को मानते हैं। लेकिन महिमा जब भी इन बदलती परम्पराओं और सोच के बारे में परिवार और विशाल से बात करती ,उन्हें समझाती तब उन लोगों का हमेशा यही कहना होता कि एक बहु और लड़की को कभी बाहर नौकरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि बहु-बेटियों का काम सिर्फ घर सम्भालना होता है। नोकरी करना लड़को को शोभा देता है।अपनी तमाम कोशिश करने के बाद भी जब महिमा अपने ससुराल वालों की सोच में कोई फर्क नहीं ला सकी। तब महिमा ने चुप रहना ही बेहतर समझा क्योंकि एक बात जो वह बहुत अच्छे से जानती थी कि अगर वो जिद करके आत्मनिर्भर बन भी जाती है तो उसके रिश्ते झूट जाएंगे जिसे वो हरगिज नहीं चाहती थी।क्योंकि उसके लिए रिश्तो से बढ़कर कुछ नहीं था। इसलिए उसने अपने सपनों से समझौता करना ही बेहतर समझा और फिर समझौता करना तो महिमा के मायके वालों ने भी सिखाया था इसलिए यह सब देखते हुए भी यह सोचकर चुप थी कि अगर वो आगे कुछ भी कहती है ,किसी भी बात का जवाब देती है तो बात उसके मायके पर आएगी ,परिवार द्वारा दिए संस्कारों पर उँगली उठायी जाएगी।
लेकिन एक बात जो सोचने वाली है साथ ही साथ अफसोस करने वाली भी कि शिक्षित परिवार होने के बावजूद भी लोग ऐसी सोच रखते हैं। ये हमारे समाज का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आज के समय में भी इन रूढ़िवादी परम्पराओं के कारण न जाने कितनी बेटियों के सपने अधूरे रह जाते हैं जिसमें सहयोग मायके वालों का भी होता है ।फिर हर एक सपने से समझौता करना भी सही है क्या?? एक लड़की को समाज में इतना हक तो देना ही चाहिए जिससे वह अपने सपनों को पूरा कर सके ।

जूली परिहार
अम्बाह,मुरैना(म.प्र.)

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