गीतिका/ग़ज़ल

सखी मेरे राम आए हैं

विरह के दिन गए भगवन, पुनः निज धाम आए हैं।
जन्मभूमि प्रफुल्लित है, सखी मेरे राम आए हैं।।

खिली जब भोर की किरणें, हुई बरखा भी मतवाली।
समद से नीर भर-भर कर, उमड़ बैठी घटा काली।
पटाखों की भी धुन जैसे, मधुर संगीत लाईं हैं।
नगर में आज उत्सव है, बजे बहुधा बधाई है।
दरस पाने कि आशा में, उमड़ कर लोग आये हैं –
विरह के दिन गए भगवन, पुनः निज धाम आए हैं।
जन्मभूमि प्रफुल्लित है, सखी मेरे राम आए हैं।।

उतारे आरती चंदा, हैं तारे दीप थाली के।
सजी यूँ ज्योति मालाएं, कि जैसे दिन दिवाली के।
सजे हैं पुष्प उपवन में, बहुत आतुर हैं स्वागत को।
मधुर मद मंद झोंके ले, पवन निरखे तथागत को।
अवनि को सींचने वारिद, सजल हो कर के आये हैं-
विरह के दिन गए भगवन, पुनः निज धाम आए हैं।
जन्मभूमि प्रफुल्लित है, सखी मेरे राम आए हैं।।

हमारे राम इस जग में, अनेकों तीर्थ से पावन।
नहीं आदर्श है दूजा, न कोई और मनभावन।
कई वर्षों का है तप ये, जो पावन बेल आई है।
बनेगा राम का मंदिर, इसी में हीं भलाई है।
जो बैठे थे कुटी में कल, वो अपने धाम आये हैं-
विरह के दिन गए भगवन, पुनः निज धाम आये हैं।
जनम भूमीं प्रफुल्लितक है, सखी मेरे राम आए हैंं