मेरी दादी की बहन
बाबूजी (पिताजी) कहते हैं, ‘उनकी मौसी अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी बनाती थी ।’
किन्तु मेरी माँ जो सब्जी बनाती है, उसकी कोई सानी नहीं ! माँ है, इसलिए बड़ाई कर रहा हूँ, ऐसी बात नहीं है ! क्योंकि माँ के पक्ष में आलोचना भी है, गोकि वह मेरी नानी की तरह सब्जी नहीं बना पाती है।
नानी ‘बेर’ की सब्जी बड़ी स्वादिष्ट बनाती थी और मेरी माँ ‘अमरूद’ की । अमरूद की सब्जी के साथ-साथ इनका चोखा भी स्वादिष्ट लगता है, दोनों खाद्य पदार्थों को बनाने में मेरी माँ को पारंगतता हासिल है।
मूंग की चटनी भी मेरी माँ बहुत करीने से बनाती है । इकलौते पेड़ से इधर एक क्विंटल से अधिक अमरूद तोड़े गए, जिनसे सब्जी और चोखा बनी, तो कुछ सावन-बाँट हुई, शेष सब्जीफरोशों ने इसे सस्ते मूल्य में खरीद लिया।
अमरूद के बदले नकद राशि नहीं, अन्य सब्जियाँ दी जाती ! माँ ‘तूत’ की चटनी भी बनाती है और चिउरा मिलाकर नारियल का लड्डू भी ! माँ और नानी– दोनों ही आलू का दम बनाने के लिए परिवारप्रसिद्ध रही हैं । माँ फूटी दूध से भी खीर बनाती है, तो खीरा की सब्जी भी ! ….और तो और बासी भात का पापड़ भी !
तभी तो—
“माँ तो माँ है,
सार्थ शमा है,
पड़ौस की आँटी–
चाहे हो, कितनी ही सुंदर ?
पर अपनी माँ, बस माँ होती है !”