गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

फ़िदा तुम पे दिल ये हमारा न होता
अगर हुस्न इतना सँवारा न होता

नहीं टूटती गर ये पतवार यारो
बहुत दूर मुझसे किनारा न होता

बदलता मैं किस्मत जो मेहनत के बल पे
तो गर्दिश में मेरा सितारा न होता

मिली होती मुझको ख़ता की मुआफी
तो तन्हा ये जीवन गुज़ारा न होता

अगर छोड़ देता वो अपनी अना को
कभी ज़िंदगी में वो हारा न होता

न खिलवाड़ कुदरत से हम करते रहते
वबा से जहां को ख़सारा न होता

न चल पाता ऐ श्लेष तू दो क़दम भी
जो माँ की दुआ का सहारा न होता

श्लेष चन्द्राकर

श्लेष चन्द्राकर

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