धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मृत्यु बनाम अमरत्व

‘मृत्यु अटल सत्य है ‘यही जीवन का सबसे बड़ा सत्य और सारतत्व है।अगर कोई किसी को ‘अमरता ‘का वरदान देने का ढोंग रचता है, तो इससे महा झूठ और छद्म कुछ हो ही नहीं सकता ! चाहे वह महाभारतकाल हो, रामायण काल हो या कोई भी कालखण्ड हो, कितनी बिडंबना है कि अश्वत्थामा को ‘अमरता ‘का वरदान देनेवाले खुद की मौत को नहीं टाल सके, खुद ही मर गए ! इससे ज्यादे वीभत्स मज़ाक क्या हो सकता है ! परन्तु यह अटल सत्य है कि अश्वत्थामा एक अत्यंत विश्वासपात्र और सत्यनिष्ठ मित्र जरूर था (कर्ण से भी ज्यादे), क्योंकि वह दुर्योधन से अपनी मित्रता की कसौटी पर उसके आखिरी वक़्त तक खरा उतरा और उसे पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से निभाया भी, उससे भी बड़ी चीज वह एक निर्भीक, निश्छल, बहादुर, अनासक्त व्यक्तित्व का भी धनी महाबली पुरुष था, तभी तो वह अपने बाप के भी गलत कार्यों को देखकर सार्वजनिक रूप से उन्हें भी उस समय धिक्कारने में संकोच नहीं किया, जब उसके बाप गुरुकलंक द्रोणाचार्य ने अर्जुन को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए एक दलित एकलव्य का दाएं हाथ का अंगूठा कटवाने का कुकृत्य किया, तो अश्वत्थामा ने सबके सामने यह कहकर अपने ही पिता, गुरु द्रोणाचार्य को यह कहकर कि ‘आपने अर्जुन को इस दुनिया का सर्वश्रेष्ठ और अजेय धनुर्धर बनाने के लिए एकलव्य के साथ यह घोर अन्याय किया है। ‘..और यही परम् सत्य और हक़ीक़त भी है !अश्वत्थामा शारीरिकरूप से भले ही अमरता को न प्राप्त किया हो, परन्तु उस सत्यनिष्ठ, विश्वासपात्र व महान व्यक्ति के किए गये कार्य मसलन, उसकी न्यायप्रियता, निष्पक्षता, हर कसौटी पर खरा उतरने वाली मित्रता आदि उसके गुण उसे ‘अमरत्व’ की तरफ ही ले जाते हैं, यही वास्तविकता और कठोर सत्य भी है। यक्ष और शाश्वत सत्य ही यही है कि ‘कोई भी व्यक्ति अपने शरीर से नहीं, अपितु अपने कार्यों से ‘अमरत्व’ को प्राप्त होता है। इस नियम से अश्वत्थामा भी अभी तक ‘अजर और अमर ‘ है ।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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