धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

श्रीकृष्ण मित्र के रूप में

गोकुल से मथुरा तक का सफर तय करने वाले नवजात शिशु के रूप श्रीकृष्ण जन्म उत्सव प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को करागर में जन्म लेने वाले देवकीनन्दन के पुत्र ,यशोदा के लाल , बांके बिहारी जी के रूप में मनाया जाता हैं जो ६४ कलाओं से परिपूर्ण होते हुए भी अपना जीवन संघर्ष की गाथा से निर्मित करते हुए दिखाई देते हैं । मान्यता हैं कि श्रीकृष्ण विष्णु भगवान के स्वरूप हैं इसलिए लोग उन्हें ईश्वर के अस्तित्व में पूजते हैं । किन्तु  उन्हें समझने हेतु एक नायक के रूप उन्हें देखना ज्यादा ठीक होगा । और उनके जीवन को समझने के लिए उनके हर पहलू को गौर करना ज्यादा प्रभावशाली होगा।जैसे उन्हें एक मित्र के रूप में देखना हो तो  उनके जीवन के संघर्ष कि गाथा लिखने,समझने,सुलझाने,परिस्थितियों को अनुकूल बनाने वा बताने में जो समय उन्होंने व्यतीत किया है उस पर प्रकाश डालना चाहिए । गौरतलब है कि मनुष्य का जीवन कठिनाइयों के समय श्रेष्ठ फल पाता है  ऐसा श्री कृष्ण का मानना हैं । अधिकतर इनके मित्रवत व्यवहार में देखने को मिलता हैं कि यह श्रेय लेने से बचते हैं जो कि एक मानवीय जीवन का अमूल्य गुण हैं । मित्रता के लिए इन्होंने अपनी बहन सुभद्रा को घर से दूर भगाकर कर प्रेम विवाह की अनुमति प्रदान करते हैं जिसमें वें बलराम के क्रोध का शिकार भी होते हैं और युद्ध के लिए भी तैयार होते हैं अर्जुन से जबकि स्वयं उसके कर्ता धर्ता हैं । यह देखना दिलचस्प हैं कि परिवार,समाज,लोक लाज,परम्परा इत्यादि के बन्धन से उपर उठकर उन्होंने प्रेम विवाह की अनुमति प्रदान किया ,  तात्कालिक युद्ध परम्परा से बचने का भी उपाय बताते हुए उन्हें सुखद जीवन यापन का धर्म ज्ञान देते हैं । जो कि मित्रता का गणितीय भाव स्पष्ट करता हैं । दूसरे ओर द्रौपदी के साथ भी कृष्ण की मित्रता देखने को मिलती हैं जहां चीर हरण के समय वह द्रौपदी के पुकार पर उनकी लाज बचाते हैं मान्यता हैं कि एक बार श्री कृष्ण की तर्जनी अंगुली में चोट लग गई थी उस वक्त द्रौपदी ने बिना कुछ  सोचे अपने आंचल का एक टुकड़ा फाड़ कर उन्हें बांध दिया था तब श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत हो पुकार लेना मैं तुम्हारी अवश्य करूंगा ।  और यदि उनकी मित्रता की चर्चा करें तो ग्वाल बाल संग उनकी मित्रता भी प्रासंगिक हैं । उसी दौर में उनके साथ राधा का प्रेम भी मित्र ता के जैसा ही पाकीजा रहा हैं यह कहना गलत नहीं होगा ।  जो सर्वाधिक चर्चा का विषय रहा मित्र के रूप में वह हैं श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता  जो कि आज तक प्रासंगिक हैं ।जिसमें  राजा और रंक के बीच का भेद मिट जाता हैं दोनों मित्र की मुलाकात सभी से परें एक अथाह सागर में गोते लगाने के समान प्रतीत होती हैं किसी लेखक की पंक्ति है–
 “देखि सुदामा की दीन दशा ,करुणा कर करुणा निधि पग धोयऊ ।पानी परात का हाथ छुियों नहीं ,नयन से पगु का धोयऊ ।।”
        स्पष्ट हैं कि श्री कृष्ण एक मित्र के रूप अधिक प्रभावी रहें हैं जो कि एक मानवीय जीवन चरित्र का ,व्यक्तित्व का, साधरणी करण का अद्भुत संगम है । इसी युग में कर्ण और दुर्योधन की मित्रता भी प्रासंगिक रही हैं । जिसे नजर अंदाज करना गलत होगा । श्री कृष्ण के भीतर मित्रवत प्रेम जन्म से मिलता हैं जिसे आनुवंशिक लक्षण के रूप में स्वीकार करना चाहिए ।। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि श्री कृष्ण मित्र के रूप में अधिक निकट पाए जाते हैैं बजाय ईश्वर के स्वरूप में ।।
“त्वमेव माता च पिता त्वमेव
 त्वमेव बंधुत्व सखा त्वमेव ।
 त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देवा ।।”  अतः श्री कृष्ण भगवान,मित्र,माता,पिता,ज्ञान, और सखा सभी रूप में विद्यमान हैं जरूरत हैं उन्हें समझने की और इसके संघर्षों से प्रेरित होने की। संभावना की कसौटी पर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ने की सीख लेने की । मित्र वह जो चेहरे पर मुस्कान बिखरे दें । और दुखों में मुस्कुराते रहने का नाम कृष्ण । अतः इस जन्म अष्टमी अपने मित्र को घर में  मुस्काने की वजह दें । और प्रेम से बोले कृष्ण कृष्ण कृष्ण।।
—  रेशमा त्रिपाठी

रेशमा त्रिपाठी

नाम– रेशमा त्रिपाठी जिला –प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश शिक्षा–बीएड,बीटीसी,टीईटी, हिन्दी भाषा साहित्य से जेआरएफ। रूचि– गीत ,कहानी,लेख का कार्य प्रकाशित कविताएं– राष्ट्रीय मासिक पत्रिका पत्रकार सुमन,सृजन सरिता त्रैमासिक पत्रिका,हिन्द चक्र मासिक पत्रिका, युवा गौरव समाचार पत्र, युग प्रवर्तकसमाचार पत्र, पालीवाल समाचार पत्र, अवधदूत साप्ताहिक समाचार पत्र आदि में लगातार कविताएं प्रकाशित हो रही हैं ।