लघुकथा

सौभाग्य (लघुकथा)

यों ही कभी-कभी मन में जिज्ञासा की लहर उठती है. उस दिन भी ऐसा ही हुआ.

मन में प्रश्न उठा- ”कन्‍हैया अपने शीश पर मोरपंख क्यों सजाते हैं?” श्री कृष्ण जन्माष्टमी जो आने वाली थी!

”मैं बताता हूं, कि श्रीकृष्ण को मोरपंख क्यों इतना प्यारा लगता है.”मोरपंख ने शायद मेरे मन की बात जान ली थी.

”गोकुल में एक मोर रहता था. वह श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त था. एक बार उसने श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए कन्‍हैया के द्वार पर जाकर जप करने का मन बनाया. वह उनके द्वार पर बैठकर कृष्ण-कृष्ण जप करता रहा.”

”क्या उसे श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त हुई.” मेरी जिज्ञासा चरम पर थी.

”एक बरस तक जप करते रहने पर भी उसे श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त नहीं हुई. उसका दुःखी होना स्वाभाविक था, वह रोने लगा. उड़ती हुई एक मैना ने मोर से रोने का कारण पूछा.”

”मैना बोलती भी है?” मैंने बीच में ही जिज्ञासावश पूछ लिया.

”प्रकृति से प्यार करके देखो, सभी बोलते हैं, अपने मन का राज खोलते हैं. मोर ने भी अपने मन का राज खोल दिया. दयालु और समझदार मैना ने उसे ढाढ़स बंधाया और अपने साथ बरसाने ले गई.”

”बरसाने क्यों? श्रीकृष्ण तो गोकुल में वास करते हैं न!” मैंने पूछा.

”भई मैंने तो आप लोगों से ही सुना है कि काम बनाने के लिए कभी साम-दाम तो कभी दंड-भेद से जुगत लड़ानी पड़ती है. एक जज साहब से काम निकलवाने के लिए लोग उनकी मैडम को खुश करते हैं. श्रीकृष्ण के मन की रानी बरसाने में वास करती हैं. श्रीकृष्ण को मनाने के लिए उनसे बड़ा सहायक भला कौन हो सकता है?’

”हां, यह बात तो है!” मैंने हुंकारा भरा.

”मोर राधारानी के द्वार पर भी कृष्ण-कृष्ण की पुकार करता रहा. श्रीकृष्ण का नाम सुनकर राधारानी तुरंत बाहर आ गईं. मोर ने उनकी चरण-वंदना की और अपनी व्यथा सुनाई.” मैना भावुक हो गई थी.

”अब ऐसा करो कि फिर से गोकुल में जाओ और श्रीकृष्ण की कृपा पाने के लिए कन्‍हैया के द्वार पर जाकर जप करो लेक‍िन इस बार कृष्‍ण नहीं राधे-राधे रटना. मोर ने ऐसा ही किया. मोर ने राधारानी की बात मान ली और लौट कर गोकुल वापस आ गया और राधे-राधे रटना शुरु किया. राधे-राधे सुनते ही कृष्‍ण दौड़े चले आए और मोर से पूछा तुम कहां से आए हो?”

”भगवन, एक बरस से आपके द्वार पर आपके नाम का संकीर्तन करता रहा, तब तो आपने मुझे पानी तक नहीं पिलाया, आज राधे नाम सुनते ही दौड़े चले आए ?”

”मैंने तुमको कभी पानी तक नहीं पिलाया, यह मेरा दुर्भाग्य है और तुम राधे-नाम जप रहे हो यह तुम्हारा सौभाग्य है. राधे तो मेरी सर्वेश्वरी है. इसलिए अब मैं तुम्हें वरदान देता हूं, कि जब तक यह सृष्टि रहेगी, तेरा पंख मेरे सिर पर सुशोभित होगा. इसी तरह जो भी किशोरी जी का नाम जपेगा, वह मेरे शीश पर रहेगा.” श्रीकृष्ण की कृपा का ध्यान करके मोरपंख भावविभोर हो गया था.

”राधे-राधे रटो चले आएंगे बिहारी.” मोरपंख अपने सौभाग्य को सराह रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सौभाग्य (लघुकथा)

  • लीला तिवानी

    सौभाग्य मात्र एक कथा ही नहीं, जीवन-दर्शन भी है. मोर को अपने सौभाग्य का पता तब चला, जब श्रीकृष्ण ने मोर को अहसास कराया कि ”राधे तो मेरी सर्वेश्वरी है, तुम राधे-नाम जप रहे हो यह तुम्हारा सौभाग्य है”. इस लघुकथा के बारे में लघुकथा मंच ”नया लेखन: नया दस्तखत पर हमारे एक पाठक राजीव रंजन ने लिखा- ”जन्माष्टमी पर इससे सुन्दर और क्या हो सकता है। राधे राधे।” आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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