कहानी

आओ, एक पल रुक जाएं

घी की सौंधी महक नथुनों को छूती हुई किसी अलौकिन सुख का भान करवा रही थी। विपिन को अहसास ही नहीं हुआ कि कब चम्मच को छोड़, उँगलियाँ खिचडी में तैरने लगी थी। खाने से बनती लार उसे ऐसे स्वाद से रूबरू करवा रही थी जिसे भूले उसे अरसा हो गया था। बड़े आलीशान पाँच कमरों वाले फ्लैट में ऐशोआराम की सारी चीजें और मल्टी नेशनल कम्पनी में प्रतिष्ठित पद, पत्नी भी मल्टी नेशनल कम्पनी में ही नौकरी करती थी।पूरा घर सजा हुआ था महंगी महंगी वस्तुओं और शो पीसो से। कहीं लेपटॉप, कहीं चार्जर पिन,हार्ड डिस्क,बिखरे पड़े हैं,रसोई में भी बिजली से चलने वाली वस्तुओं का अंबार लगा हुआ था।
दो नौकर घर में काम करने के लिए थे ,एक का नाम बसंती था जो झाड़ू पोंछा ,कपड़े बर्तन डस्टिंग कर देती थी और दूसरी थोड़ी उम्र वाली  सुमना थी लेकिन वह खाना ठीक ठाक बना लेती थी । जब कभी थोड़ी बीमार हो जाती या छुट्टी पर होती तब खाना पकाने में समस्या आती थी। पिछले छह महीने से माँ भी यही आ गईं थीं और विपिन ने उनको कोई असुविधा न हो इसलिए नौकरों की संख्या और बढ़ा दी थी।
मालती देवी जी ने कई बार दबी आवाज में  कहा भी कि सहायकों से केवल सब्जी  काटने-छिलने का काम करवा लेते हैं खाना मैं बना लिया करूंगी लेकिन विपिन को कभी मंजूर नहीं था कि उसकी माँ खाना बनाये और परेशान हो। मालती देवी चाहती थी कि अब कम से कम अपने बच्चों को खुद बनाकर खिलाए।
लेकिन यह खुशी भी वैसे ही काफूर हो गई  जैसे किसी बच्चे को खिलौने के नाम बाजार जाने को कह कर किराने की दुकान से चॉकलेट लाकर देने पर काफूर हो जाती हो क्योंकि विपिन उसी समय ऑनलाइन आर्डर करके पिज़्ज़ा वगैरह मंगवा लेता ।
मालती जी यह सब नहीं खाती थी तो उनके लिए बिरयानी पुलाव ऐसा ही कुछ मंगवा दिया जाता । खुद के हाथ से बनाये खाने का स्वाद उनको कई बार खलता लेकिन कह नही पातीं थी। भारी मन से बच्चों का साथ देने में ही भलाई समझती थी। सब खुश थे और मालती देवी भी खुद को ढालने का प्रयास कर रही थीं, फिर भी कहीं न कहीं से उदासी की घटाएं आकर उनके आस-पास बिखर जाती थी।
मालती देवी जब सुबह पूजा करके उठती तब तक  कुक का बनाया नाश्ता ठंडा हो चुका होता हालांकि बेटे ने कह रखा था कि माँ जो भी  खाने की इच्छा हो बता दिया करो लेकिन संयम नियम से रहने वाली मालती देवी एक गिलास दूध और हल्का नाश्ता कर लेतीं। जब शाम को बेटा बहू घर आते तब उनके मन की संवेदनाये रसोई में कुछ न कुछ टटोल रही होती कि बच्चों के लिए गर्म-गर्म नाश्ता बना दूँ लेकिन वे संवेदनाएं भी तब वापिस लौट आती जब बेटे की आवाज़ सुनती कि वह फोन पर कुछ आर्डर कर रहा है।
शाम का खाना कुक ,छह बजे तक बनाकर चली जाती थी और मालती देवी को आगे वाले दो घन्टे उस भोजन को ठंडा करने के लिए काफी लगते थे। जिन रोटियों को तोड़ने में दो हाथ प्रयोग में लाने पड़ते थे ऐसी मोटी व ठंडी हो चुकी रोटी बेटे-बहू व बच्चों को खाते देख उनका फिर दिल जलने लगता । दोनों बच्चे मिडिल स्कूल में आ गए थे लेकिन उनकी खाने पीने की आदतें मालती जी को कभी नही सुहाती थी।
वह हमेशा देशी सब्जियों को बनाने का सुझाव जब कभी कुक को देती तब वह कहती,”अम्मा ,बच्चे यह सब नहीं खाते।”
जीवन का मशीनीकरण हो चुका था। ऐसा लगता था, मानों सब भागे जा रहे हैं, किसी ऐसी वस्तु को पकड़ने के लिए जिसका कोई ओर छोर नहीं था।
विपिन ने एक ड्राइवर और रख लिया गया था क्योंकि बच्चों को म्यूजिक कराटे क्लास में भेजना होता था । बड़ा पोता शाम को जिम जाने लगा था क्योंकि वह जंक फूड खा खाकर थोड़ा बेडौल  हो चुका था। घर आता तब वह भी बहुत थक जाता था फिर टयूशन पढ़ाने के लिए बारी बारी से दो अध्यापक घर आते जो दोनों बच्चो को पढ़ाते थे ।
रात के नौ बजे जब डाइनिंग टेबल पर बच्चे पहुंचते तब तक छह बजे बनी हुई रोटियां ठंडी हो जाती व उन सब्जियों में भी बच्चो को कोई स्वाद नहीं दिखता ,फिर शुरु हो जाता, यह नही खाना वह नहीं खाना, फिर या तो स्नैक्स खाये जाते या फिर बहु मैगी बनाकर देती जिससे दोनों अपनी भूख मिटा कर सोने चले जाते ।
सप्ताहंत के दोनोँ दिन चारो की छूट्टी रहती थी तब कहीं न कहीं घूमने का कार्यक्रम तय कर लिया जाता । भागम भाग में दोनों बच्चों को उठाया जाता फिर कुक का बनाया नाश्ता करके सब निकल पड़ते ।कभी शाम को वापिस आ जाते कभी दो दिन बाहर किसी होटल में रुक जाते। कब वापिस घर आते तब तक सब थक कर चूर हो चुके होते । देर रात तक दूसरे दिन की यूनिफार्म और अन्य सामान को जमाते जमते कब रात के ग्यारह बजते पता भी नहीं चलता औऱ सुबह वही बिना रुके बिना थके बजने वाली अलार्म घड़ी बजते ही सब लोग उठ जाते ।
मालती देवी ने कई बार कहा कि बच्चो का पढ़ाई का भार थोड़ा कम कर दो और फिर तुम इनके साथ सुबह घर में ही  योग की आदत डाल लो जिससे बच्चे भी नियमित रूप से करने से अभ्यस्त हो जाएंगे व तुम बच्चो के साथ समय भी बिता पाओगे।
लेकिन जिम का भूत उनको घर पर रुकने नहीं देता था।
इस तीव्र गति से चलती गाड़ी को उस दिन ब्रेक मिला जब अचानक से लॉक डाउन की घोषणा हुई और सभी उड़ते हुए पंछियों को एक ठौर मिला जहां उनको ठहर जाना था। सबको लगा शायद चलती हुई जिंदगी ठहर सी गई हो।
बहू व बेटा दोनों पहले दिन आराम से उठे और फिर बिना कुक के जब खाने में अव्यस्था होने लगी तो एक सहायक को स्थायी रूप से घर मे ही रखने का निश्चय किया गया लेकिन खाना कौन बनाये व क्या बनाये, क्योंकि सबकी आदतें अलग अलग फरमाइशें करने की होने के कारण कुछ भी सेट नही हो पाता और जब नाश्ते के टाइम होता तब उनकी आफिस की मीटिंग का समय हो जाता। कभी कोई बच्चा ज़िद कर बैठता कभी कोई।
घर में सब कुछ होते हुए भी ऐसा कुछ था जो वहाँ नही था  दो चार दिन में सब उकताने से लगे थे किसी को शांति नहीं थी। अशांति व व्यग्रता चारों तरफ पैर पसारने लगी थी। मालती देवी जब देखती तब कही जीवन का विस्तार दिखता कहीं इच्छाओं का, वे समझ चुकी थी कि इस विस्तार को समेटना पड़ेगा,इंद्रियों को समेटना पड़ेगा । अगले दिन सुबह मन्दिर की घण्टियों से जब बेटे बहू की नींद खुली तो वे दोनों चाय के साथ मां के पास बैठ गए । मन की चंचलता कहीं न कहीं थोड़ा विश्राम पाने लगी थीं जो जीवन के मंथन व मनन की प्रथम सीढ़ी थी।
पिछले महीने जब से लॉक डाउन लगा है ,बेटे बहु दोनों वर्क फ्रॉम होम करते हैं और साथ साथ घर का थोड़ा बहुत काम भी ।
एक नौकर को स्थायी रूप से घर मे ही रखा हुआ था जिससे घर के काम करने में कोई असुविधा न हो । अब मालती जी को कभी-कभी रसोई में जाने का मौका मिल जाता था ।  मालती जी ने राशन के सामान की लिस्ट बनाकर  विपिन को पकड़ा दी उसने सोसाइटी के ग्रोसरी स्टोर वाले का ऑनलाइन फॉर्म भर दिया व एल घण्टे बाद डिलीवरी भी दे गया।  मालती देवी ने सबसे पहले  नौकर की मदद से सारे सामान को अलग अलग छांटा और फिर वाशिंग पाउडर मिला कर गर्म पानी से धो सूखा कर डिब्बों में भर दिया ।
आज घर में खीर और छोले भटूरे बनाये गए । बच्चो को बहुत पसंद आये। छोटा पोता पराग तो कह उठा,” दादी आप हर संडे को मेरे लिए खीर बनाया करिए।” अब बच्चे भी कुछ न कुछ फरमाइश दादी से करने लगे थे।उनके सहयोग से कभी कभी वें उनको पिज़्ज़ा वगेरह भी बना देतीं । उनके रिश्तों में अब एक विश्वास की आधारशिला रखी जा चुकी थी । जो बच्चे अपनी भागदौड़ की जिंदगी में दादी के पास पांच मिनट बैठना नहीं चाहते थे वे आजकल उनके इर्दगिर्द मंडराने लगे थे । सुबह नए नए नाश्ते के चक्कर में जल्दी उठने भी लगे थे ।
मंत्र ध्वनि के साथ जैसे ही उनकी पूजा पूरी होती वे उनकी फरमाइश पूरी करने में जुट जातीं। उनको पूजा करते देख एक दिन बड़ा बेटा बोला, “दादी यह सब मुझे भी सिखाओ न मेरे पास समय है आजकल । मैं आपकी दिनचर्या फॉलो करना चाहता हूँ जिससे मेरी इम्युनिटी भी बढ़े और मुझे एंटीबायोटिक के सहारे न रहना पड़े ।
जब कर्म करने के लिए आगे लक्ष्य होता है तब इंसान की कार्यक्षमता दुगुनी हो जाती है। बूढ़े शरीर में अब एक नई स्फूर्ति का संचार हो चुका था । जिम की जगह पापा बेटे कसरत करने लगे थे। योग प्राणायाम के वीडियो एलईडी पर लगा लिए जाते और जो कोर्सेज  ऑनलाइन चल रहे थे उनकी सहायता से योग व ध्यान अब सबकी दिनचर्या के हिस्से बन गए थे।
विपिन याद करता था वो दिन कब वह  कस्बे की तीन किलोमीटर स्कूल की दूरी को आधा घण्टे में पूरी कर लेता था । अब वही यादें उसे झंझोड़ कर वापिस उसी सागर में गोते लगवा रही थीं। पूरा एक घण्टे बीत गया उसे पता भी नहीं चला कि कब वह उस सुनहरे समय का सफर तय करता हुआ इस पल के साथ जोड़ चुका था ।
अब वह गुपचुप तरीके से बच्चो को भी ज्यादा से ज्यादा दादी के सानिध्य में रखने की कोशिश करने लगा क्योंकि जो ठहराव जिंदगी में आया था वह केवल भौतिक ठहराव नहीं था बल्कि मानसिक  व आध्यात्मिक चिंतन का ठहराव भी था । ऑफिस, घर और विद्यालयों के चक्रव्यूह में फंसे चारों जने इन दिनों एक शांति सी अनुभव करने लगे थे।
विपिन महसूस कर रहा था जैसे उसकी जिंदगी में जो उथला पन था वह अब शांत होता जा रहा था । योग व ध्यान के फलस्वरूप विचारों का मंथन होने लगा जिससे आवश्यक चिंतन रूपी कंकर  नीचे बैठते जा रहे थे और ऊपर जो आते वे पानी की तरह साफ स्वच्छ व निर्मल आते थे ।
उसे याद था वह समय भी जब  उसे उसके माता पिता ने कभी भी भीड़ का हिस्सा बनने नही दिया ।पढ़ने में वह मेधावी छात्र था और जब एम.टेक करने के बाद इस साइबराबाद की नई संस्कृति से उसका परिचय हुआ तब उसे ख़ुद को नहीं मालूम कि कब उसकी जड़ें उखड़नी शुरू हो गई थीं। पिछले पंद्रह वर्षों में उसने सफलता के नित नए सोपान तय किए और जब पंक्तियों की गणना की जाए तो इस भागती दौड़ती जिंदगी में शायद सबसे पहली पंक्ति में खड़ा मिले।
लेकिन इस महाभारी के पैर जबसे फैलने शुरू हुए इंसानों के पैरों ने गति बन्द करनी शुरू कर दी । इंसान अब पैरों से नहीं मन से चलना सीख रहा था,दिमाग को एक तरफ रख कर भावनाओ के बल पर आत्मा की सुनने की कोशिश कर रहा था।
जब रात को सब साथ बैठे इंडोर गेम्स खेल रहे होते तब मालती देवी बच्चों को पौराणिक कहानियां भी सुनाने लगीं थी जिनको सुनाने में विपिन पूरा साथ देता था । आज जो किवदंतियां सी लगती कहानी उसे जो बचपन के समझ नहीं आती थीं उनको जब अब वह विज्ञान की कसौटी पर रखता तब खरी उतरती प्रतीत होती थीं।
बच्चों के स्कूल की ऑनलाइन क्लासेज भी  चालू थीं जिनका गृहकार्य वे अब  मिनिटों में करने लगे थे क्योंकि ट्यूशन स्कूल और एक्स्ट्रा क्लासेज की भागदौड़ कम होते ही उनकी नैसर्गिक कार्यक्षमता दिखाई देने लगी जैसे बिना दबाव के फल खिल आते हैं ऐसे ही बच्चे भी खिलकर पल्लवित होने लगे।
आज अक्षय तृतीया थी और बच्चे कुछ अच्छे के मूड में थे लेकिन मालती देवी को खिचड़ी भी बनानी थी।  मालती देवी ने बच्चों को स्नैक्स बना कर दिए व शगुन की खिचड़ी , इमलाना बना दिया। घी की सौंधी महक जब मीटिंग में बैठे विपिन के नथुनों तक पहुंच चुकी थी । जैसे ही मीटिंग खत्म हुई वह डाइनिंग टेबल पर आ बैठा।
खिचड़ी इमलना का पहला कौर मुँह में रखते ही उसे ऐसा अहसास हुआ मानो वह वर्तमान में  नहीं अपने अतीत के उस पल में पहुँच गया जहां उसका हर एक कर्म ऐसे निर्धारित था जिसमें प्रकृति की पूजा दिनचर्या में शामिल थी । कस्बे की जीवन शैली में हर आवश्यक वस्तु को पकड़ कर खर्च करना जिससे किसी भी द्रव्य का अनावश्यक दुरुपयोग न हो ।
मालती देवी ने उसमे उन्हीं गुणों के सांचे में ढाला था जिसमें वह जीवन के वास्तविक संदर्भ को समझ सके व अपरिग्रह,अस्तेय के गुणों के साथ प्रकृति की देखभाल भी करे लेकिन वह आधुनिकता की होड़ में कब अपनी आदतों को छोड़कर इस अंधी दौड़ में शामिल हो गया,पता भी नहीं चला। लेकिन आज वही पांव नीचे आकर  धरती पर टिकने को तैयार थी। माँ के सानिध्य में विपिन को ऐसा अहसास हो रहा था मानो यह वह फलदार वृक्ष है जो उसे वापिस अपनी शरण में ले चुका है।
अचानक माँ की आवाज़ से तंद्रा भंग हुई ,” बेटा, कहाँ खो गए,खिचड़ी नहीं भा रही क्या?
“नहीं माँ, खिचड़ी तो बहुत स्वाद बनी है ,मैं जिस स्वाद से भटक गया था उसे ही खोजने की कोशिश कर रहा था।”
अतीत की यादों पर जब भवनाओ की पाल बननी शुरू हो तब पता भी नही चलता कि कब यादों का  भवन बनकर तैयार हो जाता है। विपिन के मुँह में खिचड़ी का घी जैसे-जैसे उसकी जीभ को तृप्त कर रही थी वैसे-वैसे ही प्रकृति की ओर लौटने की उसकी इच्छा भी बलवती होती जा रही थी। मालती देवी भी इस जीवन रूपी सागर के गहरे ठहराव में मिले मोतियों को पाकर बहुत खुश थीं।
— कुसुम पारीक

कुसुम पारीक

B 305 राजमोती 2 पो.ओ. वापी जिला -वलसाड गुजरात पिन- 396195