गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

कोरोना है साहब,  दो मीटर की दूरी बनाएं रखें और मास्क पहनना न भूलें।

“गीतिका”

सोचता हूँ क्या जमाना फिर नगर को जाएगा
जिस जगह से भिनभिनाया उस डगर को जाएगा
चल पड़े कितने मुसाफिर पाँव लेकर गांवों में
क्या मिला मरहम घरों से जो शहर को जाएगा।।

रोज रोटी की कवायत भूख पर पैबंदियाँ
जल बिना जीवन न होता फिर को जाएगा।।

बंद सारे रास्ते थे वाहनों की छुट्टियाँ
धौंस डंडों की अलग थी क्या बसर को जाएगा।।

वंदिशों के साथ आखिर खुल रहे है रास्ते अब
पाँव को छाले मिले जो अब सफ़र को जाएगा।।

देख गौतम देख ले परदेशियों की दास्ताँ है
घर हुआ नहिं घाट का फिर भी ठहर को जाएगा।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ