पर्यावरण

पौधशाला

कुछ पौधे की खरीदारी करने के लिए एक नर्सरी में गया वहां पर लगभग 10 से 15 ग्राहकों की भीड़ थी,

वहां पर लगभग 500 किस्म के फल फूल और लकड़ी के पौधे बिकने के लिए रखे गए थे।
बातो बात में नर्सरी के मालिक रामकुमार ने बताया ग्रामीण क्षेत्र में नर्सरी होने के बावजूद पौधों के बिक्री में कोई कमी नहीं है,
पहले बहुत समस्याओं का सामना करना होता था, किसान जागरूक नहीं था।
मगर अब आम,कटहल अन्य फल,फूल और लकड़ी की प्रजाति के महोगनी,सागौन के भारी डिमांड है।
जब से इंटरनेट का विकास हुआ है तब से किसान हाईटेक हो रहा है खेती के साथ बागवानी सोने पर सुहागा साबित हो रहा है।
मुझे बहुत खुशी होती है जब मुझे लगता कि मैं पर्यावरण का एक बहुत छोटा सा सहभागी हूं।
अब तक फलदार और लकड़ी के पौधे कम से कम 10 लाख की संख्या में बेच चुका हूं।
मुझे पौधों से बहुत ज्यादा लगाव हो गया है
जब रात को बिस्तर पर सोने के लिए जाता हूं ऐसा सुकून मिलता मानो कोई पिता अपने संपन्न पुत्र के ठाठ बाट को देखकर जिस तरह से सीना चौड़ा करके गर्व करता है, बिल्कुल उसी तरह मुझे भी एहसास होता है।
रात मुझे भारी लगने लगती है ऐसा लगता कि कब सुबह हो जाये और मैं तेजी से भाग कर अपने नर्सरी में पहुंच जाऊं।
पहले पौधे की बिक्री मेरे लिए एक जरूरत थी, परिवार का भरण पोषण करना मगर अब मेरा शौक बन चुका है।
पर्यावरण ने हमें बहुत कुछ दिया है मगर हम इंसान होकर पर्यावरण का नुकसान ही नुकसान कर रहे हैं।
मेरे नर्सरी पर अगर छोटे बच्चे पौधे की खरीदारी करने आते हैं,उन्हें कुछ पौधे मुफ्त में उपहार के तौर दे देता हूं।
मुझे लगता खुशी रहने के लिए रुपया होना जरूरी नहीं है बल्कि एक बेहतरीन सोच चाहिए, अपने काम के प्रति लगन चाहिए।
रामकुमार जी से बहुत सारी बातचीत हुई उनकी बातों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
अरे यह जिंदगी तो बहुत आसान है मगर जीने का सही तरीका चाहिए,
प्राकृतिक से सीखो, हरियाली से सीखो यही सीख लेकर मैं वापस नर्सरी से बाहर निकल गया।
— अभिषेक राज शर्मा

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल as223107@gmail.com indabhi22@gmail.com