राजनीति

तमिलनाडू – भाजपा अब वीरप्पन की बेटी के सहारे

दक्षिण भारत में तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहाँ पिछले चार दशकों से क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है। कभी राज्य में लगभग एक छत्र राज्य करने वाली कांग्रेस पार्टी धीरे-धीरे हाशिए पर आ गयी है। उसका हाल ये हैं कि 2016 में उसने डीएमके के साथ गठबंधन में चुनाव लडा और उसे 6.47 प्रतिशत वोट मिले और उसने 8 सीटें जीती। वहीं बीजेपी अपने सघन प्रयासों के बाद भी पनप नहीं पाई है। उसने अन्य पार्टियों के साथ मिलकर भी चुनाव लड़ा लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली।

2016 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 234 सीटों पर तमिलीसाई सौन्दराजन के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और लगभग 3 प्रतिशत वोट उसे मिले। लेकिन एक भी सीट उसे नहीं मिली। इससे पहले वह किसी न किसी छोटी पार्टी से गठबंधन में अवश्य ही लडती रहीं। लेकिन सफलता उसे कभी नहीं मिली। 2014 की मोदी लहर में भी एक उसने एक मोर्चा बनाया गया जिसमें विजयकांत की पार्टी डीएमडीके एस. रामदौस की पीएमके और वायको की पाटी एमडीएमके के साथ गठबंधन में भाजपा ने 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडा और कन्याकुमारी की लोकसभा सीट पर एच. वसंत कुमार जीतने में कामयाब हुवे। मोर्चे को 18.5 प्रतिशत वोट मिले जिसमें से बीजेपी का वोट शेयर 5.5 प्रतिशत था। 2019 के चुनाव में एच. वसंत कुमार कांग्रेस में शामिल हुवे और जीत गए। इस सबसे निराश होकर बीजेपी अब अगला चुनाव अपने बलबूते पर लड़ने की तैयारी में जुट गयी है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी उसने अभी से शुरू कर दी है। राज्य की घोर जातिवादी राजनीति में आमतौर पर सवर्णों की समझी जाने वाली बीजेपी यहां पिछड़ों और अति पिछड़ों में अपनी पैठ जमाने में लगी है।

तमिलनाडू में वन्नियार समुदाय, जो अति पिछड़ों की सूची में आता है। लगभग 37 प्रतिशत बताया जाता है। उत्तर तमिलनाडु में इस जातीय समुदाय का अच्छा-खासा दबदबा है। कुख्यात चन्दन तस्कर वीरप्पन ने आस-पास में सटे तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के जंगलों, जिन्हें स्थानीय लोग सत्यमंगलम् जंगल कहते हैं, में दो दशकों से अधिक समय तक एक छत्र राज किया है, वह इसी समुदाय से आता है। वैसे तो वह तमिल मूल का था लेकिन उसका जन्म कर्नाटक के मैसूरू जिले में हुआ था। जंगलों में रहते हुए भी वह तमिलनाडु के हर चुनाव में परोक्ष रूप से बड़ी भूमिका निभाता था। अपने जातीय समुदाय में उसकी छवि एक दबंग की थी। हालांकि, राज्य की राजनीति में दो बड़े दलों द्रमुक और अन्नाद्रमुक का ही वर्चस्व है। लेकिन इसके साथ कई छोटे मोटे दल भी है। वे या तो द्रमुक के साथ होते हैं या फिर अन्नाद्रमुक के साथ। वे जब भी देखते हैं कि किस द्रमुक पार्टी के जीतने की संभावना है वे उसमें शामिल हो जाते है। ऐसे दलों में से एक दल पीएमके है जो आमतौर पर द्रमुक के साथ रही है। जब दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व वाली वाजपेयी सरकार सत्ता में थी तो द्रमुक के साथ-साथ पीएमके भी इसमें शामिल थी। इसके नेता एस. रामदौस मंत्री भी थे। इस दल की वन्नियार समुदाय में कुछ हद तक पैठ है। कभी वीरप्पन की पत्नी मुथुलक्ष्मी इसके महिला मोर्चे के साथ जुडी हुई थी।

2004 में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद वीरप्पन का परिवार तमिलनाडु आकर बस गया था। उसकी दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी विद्या वकालत पास कर चुकी है। पिछले साल फरवरी में वे बीजेपी शामिल हो गई थी। चूंकि बीजेपी वीरप्पन की दबंग छवि को पूरी तरह भुनाना चाहती है। इसलिए पिछले हफ्ते विद्या रानी को राज्य महिला बीजेपी मोर्चे का उपाध्यक्ष बना दिया गया। जो इस बात का संकेत है कि वह पार्टी की ओर से अगले विधानसभा चुनावों में बड़ा चेहरा हो सकती है। उसका कहना है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि से प्रेरित होकर ही इस पार्टी में आई हैं। वे अपनी नई जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाने की कोशिश करेंगी। उसका कहना है कि तमिलनाडु इस समय बुरी तरह से जातिवादी राजनीति से ग्रस्त हैं। वे इस जातीय राजनीति को खत्म करने के लिए काम करेंगी। उल्लेखनीय है को उत्तर तमिलनाडु में वन्नियार और दलितों में हिंसक दंगे होते रहते हैं। बीजेपी अपने आपको इस तरह के जातीय राजनीति से दूर रहकर काम करना चाहती है। इसलिए वह सभी जातियों को साथ लेकर चलने में विश्वास करती है।

पर इसके साथ ही जमीनी सच्चाई यह है कि बीजेपी विद्या रानी जैसी युवा नेता को आगे रखकर वन्नियार समुदाय में अपने पैर जमाना चाहती है। विद्या का कहना है कि वह जीवन में बस एक बार ही अपने पिता से मिली है जब वे मात्र 6 वर्ष की थी। वे उन कारणों में बार-बार जाती है जिसकी वजह से उनके पिता ने अपने लिए अलग रास्ता चुना था। याद रहे कि वीरप्पन मात्र 17 साल की उम्र में एक कत्ल कर अपराध जगत में चला गया। विद्या रानी का इस बारे में कहना है कि उनके बुरे कामों को तो बार-बार दोहराया जाता है लेकिन उन्होंने जंगलों में रहने वालों के लिए इतने अच्छे काम किए थे कि वे ही उन्हें पुलिस से बचाने में सहायता करते थे। अगर ऐसा नहीं होता तो पुलिस उसके पिता को बहुत पहले ही पकड़ लेती। इन तीनों राज्यों के आपस में सटे जंगलों में वीरप्पन की छवि एक ‘रॉबिनहुड‘ जैसी थी। जो हर समय गरीबों की सहायता के लिए आगे रहता और उनकी रक्षा करता था। उल्लेखनीय है कि बरसों तक वीरप्पन का परिवार उनके साथ इन्हीं जंगलों में रहा था, लेकिन इसके बावजूद तीन राज्यों की पुलिस उसे लगभग ढाई दशक तक पकड़ नहीं पाई। इन जंगलों के भीतर बसे गांव में आज भी लोग उसका नाम सम्मान के साथ लेते है। विद्या रानी का कहना है कि किसी छोटे मोटे क्षेत्रीय दल में रहकर राजनीति करने की अपेक्षा उसने बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दल से ही राजनीति शुरू करने का फैसला किया। बीजेपी का प्रभाव जिस तेजी दक्षिण के राज्यों में बढ़ रहा है जल्द ही वह दिन आएगा जब यह अन्य दलों को पीछे छोड़ देगी।

अब सवाल यह उठता हैं कि क्या? भाजपा अपना जनाधार वीरप्पन की बेटी विद्या रानी, उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए बढ़ा पाएगी, क्योंकि इससे पहले भी भाजपा यहॉ की लोकप्रिय अभिनेत्री नमिता को भी पार्टी में शामिल करवा चुकी है। इससे भी इतर क्या वीरप्पन को चाहने वाले विद्या रानी को राजनीति के सफर में वह प्यार दे पाएंगे जो वे उसके पिता को देते आ रहे थे जबकि पीढ़ियों का भी अंतर आ चुका है? परोक्ष-अपरोक्ष रजनीकांत को भी पार्टी आमंत्रण दे चुकी है, लेकिन रजनीकांत कुछ अलग ही सोच लेकर चल रहे है। जो किसी से छिपा नहीं है। फिर कमल हासन भी इस जंग में ललकार चुके है। वैसे भी दक्षिण की राजनीति में कलाकारों की दिलचस्पी अच्छी-खासी रहती है। ऐसे में विद्या रानी के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। देखना यह होगा कि इस जिम्मेदारी को वे केन्द्रीय नेतृत्व के लिए किस तरह निभाने में कामयाब होती है। क्या पार्टी विधानसभा चुनाव में लाभ की स्थिति में होगी भी या नहीं? ऐसा हो भी सकता है क्योंकि जयललिता के बाद उनकी पार्टी में भी सिर फुटव्वल की नौबत आती रही है, जिसे सुलझाने के लिए मोदी अपने दूत तमिलनाडू भेजते रहे हैं।
— धनंजय कुमार 

धनंजय कुमार

मैं एक स्वतंत्र लेखक एवं स्तंभकार हूँ। मैं मूलतः मध्य प्रदेश के स्वच्छता में हैट्रिक लगा चुके नंबर वन बनें एवं 2020 में भी नंबर वन का तमगा पा चुके स्मार्ट सिटी इन्दौर का निवासी हूँ। 1990 के दशक में समाचार-पत्रों के अग्रलेख पढ़ने के बाद लेखन में रूचि जागृत हुई। जब समाचार-पत्रों में आलेखों का प्रकाशित होने लगा तो उत्साह बढ़ने लगा। अपना नाम किसी भी समाचार-पत्र में प्रकाशित होता तो बहुत ही अच्छा लगता है वरन् लेखकीय सुकून बहुत संतोष देता है। युवा होने पर फिल्में देखने का बहुत शौक था, साथ ही संगीत की तरफ भी अच्छा-खासा रूझान था। प्रशंसा एवं आलोचनात्मक पत्र अधिकांश फिल्मी कलाकारों को लिखें। जवाब नहीं आया फिर भी निराश नहीं हुआ। इसके बाद फिल्मों पर आलेख लिखना प्रारंभ किया। बावजूद इसके कहानी, लघु कथा व कविताओं के माध्यम से भी लेखन कार्य जारी रहा। इसके अलावा सामयिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विषयों पर लेखन कार्य जारी रहा। अब तक विभिन्न समाचार-पत्रों (लोकमत समाचार, दण्डकारण्य समाचार, राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी-जालंधर, दैनिक ट्रिब्यून, राज एक्सप्रेस, हरि-भूमि, चौथा संसार, बीपीएन टाईम्स, स्वतंत्र वार्ता, अटल हिन्द, हिन्दी मिलाप, अपना इन्दौर, सिटी ब्लास्ट, दैनिक नईदुनिया इत्यादि।) में आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। 24/31, संजय नगर, इन्दौर-452011 (म.प्र.) Mob.98276-56722 Email : kumar.djy@gmail.com, https://todaysspecialdk.blogspot.com