कवितापद्य साहित्य

सगे- सम्बंधी

आखिर क्या है सम्बंध
सगे- सम्बंधी में
या बिना संबंध के ही
रहते हैं एक साथ
जैसे रहते हैं कई बार लोग
या दोनों है एक दूसरे के पूरक
क्या इस युग्म में समाहित हैं
वो संबंध भी जिनके मध्य
नहीं है कोई संबंध, संबंध होकर भी
क्या ये मिलकर बनाते हैं परिधि
जिसमें समा सकते हैं
सारे रिश्ते
इक ऐसी परिधि
जिसमें कुछ रिश्ते बंधे तो हैं
सम्बन्ध की डोर से
मगर हैं
भावहीन
जिनके जीवित होने की न है प्रसन्नता
न मृत हो जाने का भय
भावहीन सम्बन्ध झूलते रहते हैं
जीवन और मृत्यु के बीच
अज्ञात सा है इस परिधि का
केन्द्र बिन्दु
बहुत खोजने पर भी
नहीं दिखता कहीं
मित्रता का भाव
न परिधि पर न परिधि के अन्दर
अवश्य ही मिलेगा
यह कहीं उन्मुक्त आकाश में
विचरता
जो स्वतंत्र होगा
हर दिखावटी बंधन से
जो देगा शरण
सगे-संबंधों से छले
थके मन को
हां यही है केन्द्र बिन्दु
हर सच्चे संबंध का
होकर भी परिधि से बाहर

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी

मैं मोती लाल नेहरू ,नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेकनालाजी से कम्प्यूटर साइंस मे शोध कार्य के पश्चात इंजीनियरिंग कालेज में संगणक विज्ञान विभाग में कार्यरत हूँ ।हिन्दी साहित्य पढना और लिखना मेरा शौक है। पिछले कुछ वर्षों में कई संकलनों में रचानायें प्रकाशित हो चुकी हैं, समय समय पर अखबारों में भी प्रकाशन होता रहता है। २०१० से पलाश नाम से ब्लाग लिख रही हूँ प्रकाशित कृतियां : सारांश समय का स्रूजन सागर भार -२, जीवन हस्ताक्षर एवं काव्य सुगन्ध ( सभी साझा संकलन), पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें ई.मेल : aprnatripathi@gmail.com ब्लाग : www.aprnatripathi.blogspot.com