कविता

रिश्ते

रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता,
रिश्ता निभाने से रिश्ता बनता है।
“दिमाग” से बनाये हुए “रिश्ते”
बाजार तक चलते है,,,!
“और “दिल” से बनाये “रिश्ते”
आखरी सांस तक चलते है,..

दिमाग से रिश्ते पल में बनते है ,
दिमागी रिश्तों में सिर्फ दिमाग ,
अपना काम करता रहता हैं
दिमाग सिर्फ नफ़ा नुकसान ,
हरदम देखता रहता है ,
जो दिखा नुकसान तब,
तुरन्त भरे बाजार में ही साथ छोड़ता है ।।

दिल से बने रिश्ते जल्दी न बनते,
दिल तो अपने समान दिल देख,
रिश्ते जोड़ता ,बनाता है ,
दिल मे जगह न मिलती आसानी से,
लेकिन जो एक बार मिल गई ,
तो दिल से निकलता नहीं आसानी से ,

दर्द जो हो किसी एक को तो,
दिल ही तो रोयेगा न उसके लिए,
तड़फ उठेगा दर्द को देख के,
पर रिश्ते तो सौदा बन रहा गए,।।

भागमभाग में रिश्ते खो गए कहीं ,
निभने लगे दिमाग से रिश्ते,
इंसानी दिल खो गया शायद,
या दिल घायल हो गया बार बार,
दिमागी रिश्ते निभाते हुए ।।।।

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।