कविता

माँ, मैं वापस आ ना पाई

माँ,
तेरे आंसू को मैं आज पोंछ ना पाई
तेरे दर्द को मैं आज मोल ना पाई ॥
तेरे दुख का क्या अनुमान मैं लगाऊं
लोगों की बातों से तुझे बचा ना पाई ॥
इस स्थिति में तू खुद को संभाल ना पाई
माँ, मैं वापस आ ना पाई॥ २॥
माँ,
पापा ने भी मुझे इतना पढ़ाया
हर सफलता के काबिल बनाया॥
दुल्हन बनेगी मेरी गुड़िया
यह ख्वाब था उन्होंने सजाया ॥
इस पीड़ा से उनको मैं बचा ना पाई
माँ, मैं वापस आ ना पाई॥ २॥
माँ,
छोटी बहन भी खुद पर अफ़सोस जताएगी
लोगों से अब वो पल-पल घबराएगी ॥
औरत ही दुर्गा का स्वरुप है इसे तू कहना
सबसे लड़ने की शक्ति इसे तू देना ॥
इतनी जिम्मेदारियां छोड़ दूर मैं चली आई
माँ , मैं वापस आ ना पाई॥ २॥
माँ,
लोग भी सड़कों पर उतर आएंगे
इंसाफ की मांग का दिया जलाएंगे ॥
मेरी तस्वीर हर जगह लगाएंगे
और चार दिन बाद भूल भी जाएंगे॥
पर माँ तू तब तक लड़ना
जब तक उन्हें फांसी पर ना चढ़ाएं ॥
ऐसा हादसा भविष्य में
फिर कभी कोई ना दोहराए॥ २॥
— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा