कविता

औरतें बहुत चालाक होती हैं

औरतें बहुत चालाक होती हैं
बड़ी ही सावधानी से,
अपने चारों ओर
इक वृत्त खींच लेती हैं !
… और इस वृत्त में
अपने अरमान छुपा लेती हैं !
हां ! इजाज़त नहीं देती
वो किसी को भी,,,
इस वृत्त की लक्ष्मणरेखा लांघने की!
सच में! औरतें बहुत चालाक होती हैं!
शायद,,,
छुपी होती हैं,
इस वृत्त के अंदर
उनकी अबोली ख्वाहिशें
जो अक्सर…
दूजो की आकांक्षाएं पूरी करने की
बलि चढ़ जाती हैं !
नम कोरों की नमी
झट से पोंछ लेती हैं
और चेहरे पर दिखावटी हंसी
दिखा देती हैं…
सच में! औरतें बहुत चालाक होती हैं!
एक आवरण चढ़ा होता है,
उनके मुख पर भी
औढ़ मुखौटा जिसका
वह दिल का दर्द छुपाती हैं !
छोड़ बाबुल का घर
साजन के घर जब जाती हैं,
भूल के नाम अपना
नई पहचान वो अपनाती हैं!
प्यार – मुहब्बत – हुनर से,
मकान को घर बनाती हैं
अपनी परिधि में रह
रिश्तों को वो सजाती हैं !
पैदा होती हैं कहीं
और,,,
दूजे घर में “जा” बस जाती हैं
सच में! औरतें बहुत चालाक होती हैं!
बन धरती,,,
समेटती है खुद में
भविष्य की धरोहर को!
अपने पेट पर नया वृत्त
वो बना लेती हैं
… बचाता है यह वृत्त
नवजात को दुनिया की ठोकर से !
अपने अंश को
नौ माह कोख में सींचती हैं
“प्रसव पीड़ा” खुशी से सह,
अपने वंश को बढ़ाती हैं!
सच में! औरतें बहुत चालाक होती हैं।
बेटी-बहन-अर्धांगिनी-मां-दादी
के रिश्तों में
तय करती है,
वो जिंदगी का सफर
कभी औढ़,,,
सच्ची और कभी नकली मुस्कुराहट
औरत होने का दर्द छुपाती हैं
और त्याग की मूर्ति बन जाती हैं !
सच में ! औरतें बहुत चालाक होती हैं।।
— अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed