कविता

उलझनों के झूले

उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं।
अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है।
जिंदगी हर त्यौहार को ,
हर हाल में उदास होकर भी,
खुशियों के झूले पर झूल जाती है।
उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं।
अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।
जिंदगी हर दिन ,
नयी लड़ाई के लिए तैयार हो जाती है ।
रोते हुए भी मुस्कुरा कर,
सब ठीक है…….!!!!
यह बात कह जाती है ।
उलझनों के बीच भी मुस्कुराती हैं।
अपने दर्द को दो घड़ी भूल जाती है ।
जिंदगी में झूले ही ,
नहीं मिलते हर पल ।
रस्सियों पर झूलती ।
जिंदगी भी ,
अपनी बात कह जाती है।
खुशियां कीमतों से ही नहीं खरीदी जाती ।
मुस्कुराने के लिए हर दर्द से उभरकर ,
जिंदगी हर बात कर जाती है।

— प्रीति शर्मा असीम

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com