गीतिका/ग़ज़ल

शिक्षक

शिक्षक ध्यान में आये तो, मेरा मन महकता है !
मेरी सांसे महकती हैं मेरा, जीवन महकता है !!

महकती रूह कहती है कि उसका तन महकता है
जिसे शिक्षक छुए माटी का वो बरतन महकता है !!

महकती बस्तियां देखीं महकते लोग देखे हैं
कभी साया महकता है कभी दरपन महकता है !!

संभल जाना बुढ़ापा है बहे जाना जवानी है
पचासों वर्ष पहले का मेरा बचपन महकता है !!

बिखर जाती है खुशबू फूल खिल जाते हैं शाखों पर
महक से ‘शान्त’ जिसकी मेरा घर-आँगन महकता है !!

— देवकीनन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ