कविता

श्री राम हनुमान युद्ध (भाग -1)

सुनो , सुनाता हूँ किस्सा ये ,
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग बड़ा है
राम से भी प्रभु राम का नाम …
लंका विजय के बाद प्रभु
श्रीराम अयोध्या आए थे
ग्रहण सिंहासन को करके
वह राजा राम कहाए थे
दूध दही की नदियाँ बहती
रामराज था देश में
प्रजा सुखी संतुष्ट थी पाके
राजा राम के वेश में
दो अक्षर का नाम लो प्यारा
दुःख का होवे काम तमाम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग …..
एक दिवस दरबार सजा था
विश्वामित्र जी आये थे
 शीष ले आओ ययाति का
प्रभु को आदेश सुनाए थे
नमन किया गुरु को प्रभु ने
और आसन उच्च प्रदान किया
आवभगत के बाद प्रभु ने
रार का कारण जान लिया
हठ पे गुरु की तब प्रभु ने
सबके सम्मुख ये ठान लिया
सूर्य डूबने से पहले वध
होगा ये ऐलान किया
पल अंतिम है निकट ययाति
अब ना कहना त्राहि माम्
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
ले करके श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग ….
जान के प्रण श्री राम प्रभु का
अब ययाति थर्राया
जा पहुँचा हनुमान के दर पर
स्वर उसका था भर्राया
कपि नहीं थे घर पर उस पल
अंजनी माँ ने बिठाया था
शरणागत था भूप सामने
ढाढस उसे दिलाया था
शरण दो माताजी कहके
उसने था करुण विलाप किया
मत घबराओ राजन तुम
कहके हनुमत से मिलाप किया
अभय वचन दे दिया है मैंने
रक्षा इसकी करनी है
चाहे जो हो जाए वचन की
लाज भी तो रखनी है
सुनके माँ के वचन कपि तब
मन ही मन हर्षाये थे
शरणागत की रक्षा करना
धर्म बड़ा है बताए थे
जान सके ना केसरी नंदन
किसका ये अपराधी है
अभय दिया है शरणागत को
रक्षा करना मेरा काम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग ……
गुरु की आज्ञा पालन को प्रभु
तज के निकले अपना धाम
धनुष हाथ ले विकट रूप धर
पूरा करने  अपना काम
देव यक्ष गंधर्व सहित सब
चिंतातुर थी सृष्टि तमाम
क्या होगा तब आगे किस्सा
प्रभु पहुँचेंगे जब कपि के धाम
रवि की गति भी शिथिल हुई थी
असमंजस था मन में भारी
संकट में हैं केसरी नंदन
आज परीक्षा की है बारी
शरणागत की रक्षा करेंगे कि
स्वामिभक्त कहलाएंगे
जब कपि को सम्मुख पाएंगे
करेंगे क्या फिर राजा राम
सुनो सुनाता हूँ किस्सा ये
लेकर के श्री राम का नाम
क्यों कहते हैं लोग …..

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।